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दुर्गा खोटे और शांतिप्रिया : हिम्मत और हौसले की कहानी, पति की मौत के बाद संभाला परिवार और करियर

Durga Khote and Shantipriya: A story of courage and determination, managing family and career after the death of her husband

भारतीय सिनेमा के पर्दे पर जो ग्लैमर और चकाचौंध दिखती है, उसके पीछे कलाकारों का संघर्ष अक्सर कहीं अधिक गहरा और प्रभावशाली होता है। खासकर उन महिला कलाकारों के लिए, जिनके लिए अभिनय का क्षेत्र हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। अभिनेत्री दुर्गा खोटे और शांतिप्रिया, दो अलग-अलग पीढ़ियों से, इसी संघर्ष और दृढ़ता की मिसाल हैं।

दोनों ने न केवल अभिनय की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने जीवन को एक नई दिशा दी।

दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को महाराष्ट्र के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक ऐसे दौर में, जब फिल्मों में काम करना महिलाओं के लिए सामाजिक कलंक माना जाता था, उन्होंने इस सोच को चुनौती दी। उनकी शादी महज 18 साल की उम्र में विश्वनाथ खोटे से हुई, जो एक सफल मैकेनिकल इंजीनियर थे। कुछ ही वर्षों में वह दो बच्चों की मां बनीं, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। जब दुर्गा सिर्फ 20 साल की थीं, तब उनके पति का निधन हो गया। आर्थिक रूप से टूट चुकीं दुर्गा खोटे को अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए काम की तलाश थी।

शिक्षित होने के कारण उन्होंने ट्यूशन देना शुरू किया, लेकिन जब फिल्मों से ऑफर मिला, तो उन्होंने स्वीकार किया। उनकी पहली फिल्म ‘फरेबी जाल’ (1931) थी, जो असफल रही। लेकिन निर्देशक वी. शांताराम ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ (1932) में तारामती की भूमिका के लिए मौका दिया। इससे वह रातों-रात स्टार बन गईं। इसके बाद उन्होंने ‘माया मच्छिंद्र’, ‘भरत मिलाप’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘बॉबी’, ‘कर्ज’ जैसी फिल्मों में काम किया और खुद को अभिनय की हर शैली में सिद्ध किया।

उन्होंने 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और भारतीय सिनेमा को ‘मां’ के किरदारों में एक गरिमा दी। उन्होंने ‘फैक्ट फिल्म्स’ नाम से प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया और कई शॉर्ट फिल्में बनाईं। उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया।

22 सितंबर 1991 में 86 वर्ष की उम्र में दुर्गा खोटे का निधन हो गया। लेकिन उन्होंने जो राह बनाई, वह आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई।

वहीं बात करें शांतिप्रिया की, तो उनका जन्म 22 सितंबर 1969 को आंध्रप्रदेश के रंगमपेटा गांव में हुआ। उन्होंने महज 18 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘एंगा ओरु पट्टुकरन’ (1987) से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में करीब 25 से अधिक फिल्में कीं, जिनमें वह एक सशक्त अभिनेत्री के तौर पर पहचानी जाने लगीं।

1991 में उन्होंने अक्षय कुमार के साथ हिंदी फिल्म ‘सौगंध’ से बॉलीवुड में कदम रखा। यह फिल्म दोनों की पहली हिंदी फिल्म थी और काफी सफल रही। इसके बाद उन्होंने ‘मेरे सजना साथ निभाना’, ‘फूल और अंगार’, ‘मेहरबान’, ‘वीरता’, ‘इक्के पे इक्का’ जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन 1994 के बाद उन्होंने अचानक फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली और परिवार पर पूरा ध्यान लगा दिया।

1999 में शांतिप्रिया ने अभिनेता सिद्धार्थ रे से शादी की, जो वी. शांताराम के पोते थे और ‘बाजीगर’ जैसी फिल्मों में नजर आ चुके थे। दोनों के दो बेटे हुए। लेकिन 2004 में सिद्धार्थ रे का निधन 40 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से हो गया। उस समय शांतिप्रिया का जीवन एकदम बदल गया। उन्होंने न केवल अपने बच्चों को अकेले पाला, बल्कि खुद को टूटने से भी बचाया। लंबे समय के बाद, शांतिप्रिया ने फिर से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने ‘माता की चौकी’, ‘द्वारकाधीश’, और ‘धारावी बैंक’ जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। 2023 में उन्हें इंटरनेशनल प्रेस्टिजियस वुमन आइकन अवार्ड से नवाजा गया।

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