नई दिल्ली, 29 अप्रैल )। लोकसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान समाप्त हो चुका है और तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होना है। इस सबके बीच सभी पार्टियां अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक चुकी है। भाजपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों के चुनाव प्रचार के तरीकों को देखें तो आपको इसमें खासा फर्क नजर आएगा।
दोनों पार्टी के जो सबसे बड़े स्टार प्रचारक चेहरे हैं, उनके कार्यक्रमों को ही देख लें तो आपको इसका अंदाजा लग जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस भीषण गर्मी में भी एक दिन में कई चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वहीं, राहुल गांधी की बात करें तो वह एक दिन में एक या दो रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वह भी हर दिन ऐसा नहीं कर रहे हैं। पीएम मोदी रैलियों के संबोधन के बाद रोड शो भी करते हैं। इसके साथ ही सरकार के कई कार्यक्रमों में पीएम मोदी शिरकत भी करते रहते हैं।
दूसरी एक और चीज गौर करने वाली है कि पीएम मोदी की रैली और रोड शो उन क्षेत्रों में होती है, जहां अगले चरण में चुनाव होना होता है। वहीं, राहुल गांधी की रैली को लेकर ऐसा कुछ ट्रेंड देखने को नहीं मिला है। इसका एक बेहतर उदाहरण ऐसे देख सकते हैं।
ओडिशा के केंद्रपाड़ा में राहुल गांधी की 28 अप्रैल को रैली हुई। जबकि, ओडिशा में 4 चरण से लोकसभा सीटों पर चुनाव होना शुरू होगा और इस केंद्रपाड़ा की सीट पर 7वें और अंतिम चरण में मतदान होना है।
इस केंद्रपाड़ा सीट का चुनावी इतिहास भी देखें तो आपको समझ में आ जाएगा कि इस लोकसभा चुनाव के प्रचार को लेकर कांग्रेस कितनी सीरियस है।
दरअसल, इस सीट पर 17 आम चुनाव हो चुके हैं और इसमें से 1 बार कांग्रेस की झोली में यह सीट आई है। यह एक जीत कांग्रेस को यहां 1952 में मिली थी। इस सीट को वर्तमान में बीजद (बीजू जनता दल) का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर तीन बार बीजू पटनायक ने लोकसभा चुनाव जीता और इसका प्रतिनिधित्व किया। इसी सीट से बीजद के ही बैजयंत पांडा ने 2009 और 2014 में जीत दर्ज की और 2019 में इस सीट पर बीजद के अनुभव मोहंती जीते। लेकिन, अब दोनों भाजपा में हैं।
इस बार बैजयंत पांडा इस सीट से बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में यहां राहुल गांधी की अभी सभा होना चौंकाने वाला ही है।
पार्टी ने राहुल गांधी से यहां रैली कराने का निर्णय किन परिस्थितियों में लिया, यह तो कांग्रेस का आंतरिक विषय है। लेकिन, अगर राजनीति को समझने वालों की मानें तो यह पार्टी का बेहद ही खराब निर्णय है। क्योंकि एक पार्टी के तौर पर कोई कैसे यह निर्णय कर सकता है कि इतने लंबे समय तक चलने वाले आम चुनाव में कब और कहां प्रचार करना है, इसकी सही रणनीति ना हो।