नई दिल्ली, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जी इंटरप्राजेज के मामले में प्रतिभूति एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) को दिए अपने जवाब में कहा है कि इस बड़ी सूचीबद्ध कंपनी के मानद अध्यक्ष सुभाष चंद्रा और प्रबंध निदेशक एवं सीईओ पुनीत गोयनका ने हेराफेरी कर जनता के पैसे को निजी कंपनियों में भेज दिया। सेबी ने एसएटी को अपने जवाब में कहा, मौजूदा मामले में, इस बड़ी सूचीबद्ध कंपनी के मानद अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एवं सीईओ विभिन्न योजनाओं और लेन-देन में शामिल हैं, जिसके माध्यम से सूचीबद्ध कंपनी का सार्वजनिक धन बड़ी मात्रा में इन व्यक्तियों के स्वामित्व और नियंत्रण वाली निजी संस्थाओं को दिया गया।
सुभाष चंद्रा और पुनीत गोयनका ने सेबी के आदेश के खिलाफ एसएटी का दरवाजा खटखटाया है। सेबी ने उन्हें जी एंटरप्राइजेज से धन की हेराफेरी के आरोप में किसी भी सूचीबद्ध कंपनी में निदेशक पद या प्रमुख प्रबंधन पद पर काम करने से रोक दिया है।
सेबी ने कहा, इस संबंध में अपीलकर्ता का आचरण काफी कुछ बता रहा है। न केवल उल्लंघन हुआ है, बल्कि इस तरह के गलत कामों को कवर करने के लिए कई झूठे दस्तावेज और बयान भी प्रस्तुत किए गए हैं। शिरपुर मामले में हमने देखा है कि प्रमोटर समूह ने अपने शेयरों को बेचने का समय तय किया इस तरह तय किया कि खुले बाजार में शिरपुर के शेयरों में गिरावट का खामियाजा उन्हें न भुगतना पड़े। यह अंतत: छोटे खुदरा निवेशक हैं जिन्होंने शेयर की कीमत में गिरावट की मार झेली।
जी लिमिटेड देश की शीर्ष 200 सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों में से एक है, जिसके पास बड़ी संख्या में सार्वजनिक शेयरधारक और खुदरा निवेशक हैं और इसलिए, भारतीय प्रतिभूति बाजार में इसका एक प्रमुख स्थान रखता है।
सेबी ने कहा कि जैसा कि विवादित आदेश में उल्लेख किया गया है कि अपीलकर्ताओं ने निवेशकों के साथ-साथ नियामक को भी गलत जानकारी दी और नकली दस्तावेजों के माध्यम से एक बहाना बनाया कि पैसा सात संबंधित कंपनियों द्वारा वापस कर दिया गया था, जबकि वास्तव में, यह जी लिमिटेड का अपना फंड था जो कई स्तरों से घूमता हुआ अंत में वापस उसी के खाते में आ गया। ये तथ्य यथोचित रूप से बताते हैं कि ऐसी कंपनियों के प्रबंधन की सुरक्षा और उनके निवेशकों और अन्य हितधारकों की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।
वास्तव में, यदि प्रारंभिक जांच के दौरान, प्रथम ²ष्टया यह पाया जाता है कि व्यक्ति प्रतिभूति बाजार में हेराफेरी में लिप्त है, तो सेबी निवेशकों के हितों की रक्षा और प्रतिभूति बाजार की अखंडता की रक्षा के लिए एकतरफा अंतरिम आदेश पारित करने के लिए बाध्य है।
जिस तरह से एक प्रवर्तक कंपनी से दूसरी में पैसा प्रवाहित हुआ है, उससे निस्संदेह यह स्पष्ट है कि प्रवर्तकों द्वारा जी लिमिटेड और अन्य सूचीबद्ध कंपनियों के धन का उपयोग यह गलत धारणा देने के लिए किया गया है कि सात संबंधित दलों ने जी लिमिटेड (यस बैंक द्वारा विनियोजित) को 200 करोड़ रुपये की राशि चुका दी है।
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