दीनबंधु छोटू राम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीसीआरयूएसटी), मुरथल के कुलपति श्री प्रकाश सिंह ने कहा कि ऊर्जा संरक्षण केवल एक तकनीकी आवश्यकता नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। कुलपति सिंह, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिए ‘ऊर्जा संरक्षण और सतत भवन संहिता (ईसीएसबीसी)’ पर दो दिवसीय जागरूकता कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे, जिसका आयोजन डीसीआरयूएसटी, मुरथल और हरियाणा नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (हारेडा) के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है।
कुलपति ने कहा कि भारत प्रौद्योगिकी, नवाचार और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने आगे कहा, “भवन और अन्य अवसंरचनाएं केवल कार्यात्मक संरचनाएं ही नहीं हैं, बल्कि वे राष्ट्रीय प्रगति, ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साधन भी हैं।” उन्होंने यह भी कहा, “आज हम जिन भवनों और अवसंरचनाओं का निर्माण करते हैं, वे दीर्घकालिक राष्ट्रीय परिसंपत्तियां हैं, जो ऊर्जा खपत, कार्बन उत्सर्जन, परिचालन लागत और भावी पीढ़ियों के जीवन स्तर को प्रभावित करती हैं।”
कुलपति ने कहा, “यदि हमें 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करना है, तो हमारे द्वारा डिजाइन की जाने वाली प्रत्येक इमारत उच्च प्रदर्शन वाली, जलवायु के अनुकूल और टिकाऊ होनी चाहिए।”
भारतीय वास्तुकला के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, कुलपति सिंह ने कहा कि सदियों से भारतीय पारंपरिक पद्धतियाँ ऊर्जा संरक्षण के जीवंत उदाहरण रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब इन स्वदेशी अवधारणाओं को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा जाएगा, तो कम ऊर्जा खपत वाले अधिक आरामदायक और टिकाऊ भवन बनाना संभव होगा।
उन्होंने कहा कि ऊर्जा संरक्षण, भारतीय वास्तुकला और आधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण आत्मनिर्भर, टिकाऊ और विकसित भारत की मजबूत नींव है।
उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन, बढ़ती ऊर्जा मांग, शहरीकरण और मानव सुविधा जैसी चुनौतियों का समाधान अकेले नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक एकीकृत डिजाइन दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वास्तुकार, इंजीनियर, योजनाकार और स्थिरता विशेषज्ञ प्रारंभिक चरण से ही मिलकर काम करें। उन्होंने कहा कि इससे परियोजनाओं में शुरू से ही ऊर्जा दक्षता, मानव सुविधा और मानकों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकता है।

