लखनऊ, 21 फरवरी । विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि अंग्रेजी बोलने, पढ़ने और लिखने का विरोध नहीं है। लेकिन विधानसभा में अंग्रेजी बोली जाए फिर उसका अनुवाद हो, यह उचित नहीं है। क्योंकि इसे गांव के लोग नहीं समझ सकेंगे।
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय विधानसभा के सत्र में भाग लेने के दौरान पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यहां पर हिंदी सभी लोग समझते हैं। क्षेत्रीय बोली भोजपुरी, अवधी और ब्रज को लाएं। लेकिन अंग्रेजी लाना ठीक नहीं है। अंग्रेजी हमारी भाषा नहीं है। अंग्रेजी पढ़ें, लिखें यह सब तो ठीक है। विधानसभा में अंग्रेजी कभी नहीं बोली गई। इसको विधानसभा में कार्यवाही में लाने की क्या आवश्यकता है।
माता प्रसाद ने कहा कि हम अंग्रेजी पढ़ाने के विरोधी नहीं हैं। इंग्लिश खूब पढ़ें। इसके साहित्य को खूब पढ़ें। यहां हिंदी भाषी लोग हैं। इसे वे समझते हैं। यदि अंग्रेजी में बोला जाएगा, उसका प्रसारण गांव में होगा, कोई समझ नहीं सकेगा। इस कारण हम इसका विरोध करते हैं।
इसके पहले उन्होंने कहा था कि हम लोग अंग्रेजी भाषा के विरोधी नहीं हैं। लेकिन गांव क्षेत्र का आदमी कार्यवाही की अंग्रेजी भाषा को नहीं समझेगा। मैंने उसी का विरोध किया। मैंने सुझाव दिया कि इसे उर्दू कर दें या फिर संस्कृत कर दें। यही बात मैंने कही।
उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सपा अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाएगी और जब सरकार आम जनता के बच्चों को बेहतर सुविधाएं देने की बात करती है, तो ये लोग उर्दू थोपने की वकालत करने लगते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सपा देश को कठमुल्लापन की ओर ले जाना चाहती है, जो कतई स्वीकार्य नहीं होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की स्थानीय बोलियों—भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेलखंडी को विधानसभा की कार्यवाही में स्थान देने के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इन बोलियों को हिंदी की उपभाषाएं मानते हुए सरकार इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है।
सीएम योगी ने कहा कि हमारी सरकार इन भाषाओं के लिए अलग-अलग अकादमियों का गठन कर रही है, ताकि ये समृद्ध हों। ये हिंदी की बेटियां हैं और इन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए। यह सदन केवल विद्वानों के लिए नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग की आवाज को यहां स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेलखंडी का विरोध कर रहे हैं, वे दरअसल उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत के विरोधी हैं।
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