April 20, 2024
Evergreen

सरदार के अथक सिपाही वीपी मेनन

अपनी आजादी की दौड़ में शामिल भटके हुए राजकुमारों को समझाने-बुझाने व नियंत्रण करने की प्रक्रिया में कई मोड़ आए।

लेकिन इस अभियान में शामिल राज्यों के सचिव वी.पी. मेनन को कभी भी उचित श्रेय नहीं मिला, जिन्होंने भारत की एकता के लिए राजकुमारों को समझाने में अथक परीश्रम किया।

सरदार पटेल ने उन पर अटूट विश्वास किया। ऐसे ही एक खिलाड़ी थे दांता। इस अजीब आदमी को समझाने-बुझाने की जरूरत थी। गुजरात के एक छोटे से राज्य, जिसे दंता कहा जाता था, जिसका क्षेत्रफल 347 वर्ग मील से अधिक नहीं था और जिसकी आबादी 31 हजार से कुछ अधिक थी, को बाहर रखा गया।

फिर भी दंता का अपना महत्व था, क्योंकि वह राजपूतों के परमार वंश का मुखिया होने का दावा करता था। गुजरात के राज्यों के विलय के बाद दंत के महाराजा के संपर्क में आने के लिए बार-बार प्रयास किए गए।

वह एक धार्मिक व्यक्ति था और दिन में कई घंटे धार्मिक संस्कारों और समारोहों में बिताता था। वास्तव में वह हर साल जून से सितंबर तक की अवधि में शाम आठ बजे से अगली सुबह नौ बजे तक धर्म-कर्म में डूबा रहता था।

उसके राज्य की अस्सी प्रतिशत आबादी भीलों की थी। मेनन के मुताबिक इस आदिवासी आबादी ने बम्बई के सामने कानून-व्यवस्था की कठिन समस्या खड़ी कर दी। हम वहां के राजा की इच्छा के विरुद्ध उस पर कब्जा करने से बच रहे थे।

मेनन ने बताया कि 7 अक्टूबर 1948 को वहां के महाराणा ने मुझे लिखा कि उनकी धार्मिक प्रवृत्ति और सांसारिक मामलों में घटती दिलचस्पी के कारण उनके लिए राज्य के कामकाज में शामिल होना संभव नहीं था। उन्हें पद छोड़ने की अनुमति दी जाए और अनुरोध किया कि उनके बेटे को उनके उत्तराधिकारी के रूप में शासक माना जाए।

भारत सरकार ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। नए शासक ने 16 अक्टूबर, 1948 को विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए और राज्य को 6 नवंबर को बंबई की सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया।

दक्कन में स्थित एक अन्य प्रमुख राज्य कोल्हापुर था। वहां उत्तराधिकार का विवाद था। वहां के महाराजा को विचार-विमर्श के लिए दिल्ली आमंत्रित किया गया। फरवरी 1949 में महाराजा ने अपने राज्य को बॉम्बे में विलय करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। उनका प्रिवी पर्स 10 लाख रुपये का था।

कुछ समय पहले मेनन को कोल्हापुर के महाराजा की ओर से एक याचिका प्राप्त हुई थी, इसमें जिसमें भारत सरकार से एक आयोग नियुक्त करने का अनुरोध किया गया था ताकि शासक को गोद लेने की वैधता की जांच की जा सके। महाराजा को डर था कि उनकी गद्दी की वैधता पर सवाल न खड़ा हो जाए।

एक अपवाद के साथ भारत सरकार ने सत्ता के हस्तांतरण से पहले राजनीतिक विभाग द्वारा लिए गए उत्तराधिकार से संबंधित किसी भी फैसले को खारिज करने से इनकार कर दिया।

“कोल्हापुर राज्य का प्रशासन 1 मार्च, 1949 को बंबई के प्रीमियर बीजी खेर की अध्यक्षता में हुए एक समारोह में भारत सरकार की ओर से बॉम्बे सरकार को सौंप दिया गया।”

अब छोटे शासकों के दिन लद गए थे। उन्हें अपने राज्यों को उन प्रांतों के साथ विलय करने के लिए सहमत होना पड़ा, जिनमें वे स्थित थे।

उदाहरण के लिए विंध्य के राज्य तीन तरफ संयुक्त प्रांत से और दक्षिण में मध्य प्रांतों से घिरे थे। बुंदेलखंड और बघेलखंड के बीच 35 राज्य थे। सभी को उनके संबंधित प्रांतों में शामिल कर लिया गया।

बाद में कुछ गलतियाँ हुईं। रीवा के महाराजा ने शुरू में कठिनाई उत्पन्न की। सरदार ने उन दो प्रांतों के बीच विंध्य प्रदेश के वितरण के बारे में चर्चा के लिए संयुक्त प्रांत और मध्य प्रांत के प्रधानों को आमंत्रित किया।

चर्चा ने दोनों प्रीमियरों के बीच मतभेद का खुलासा किया। सरदार चाहते थे कि वे एक समझौते पर आएं। लेकिन वे समझौते को राजी नहीं थे। ऐसे में भारत सरकार के पास विंध्य प्रदेश को केंद्र शासित क्षेत्र के रूप में शामिल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। आखिर में विंध्य प्रदेश को 1 जनवरी 1950 को भारत में शामिल कर लिया गया।

इसके बाद मध्य भारत संघ था। मेनन ने अपने राजनयिक कौशल से लगभग 47,000 वर्ग मील और 70 लाख की आबादी वाले इलाके का भारत में बिलय कराया। लगभग 8 करोड़ रुपये वार्षिक राजस्व वाले इलाके ने 28 मई, 1948 को अपना शासन- प्रशासन भारत सरकार को सौंप दिया।

इसके बाद पटियाला और ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन (पेप्सू) का मामला आता है। एक बार फिर मेनन ने इन राज्यों के भविष्य के संबंध में चर्चा की। लेकिन फरीदकोट के राजा और स्टेट्स पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के बीच मतभेद पैदा हो गया, जिसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे। ऐसे में भारत सरकार को हस्तक्षेप का मौका मिला। मेनन ने सरदार पटेल के साथ चर्चा की। उनकी स्वीकृति के बाद लॉर्ड माउंटबेटन से संपर्क किया।

लॉर्ड माउंटबेटन ने सुझाव दिया कि फरीदकोट के राजा के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से पहले कुछ प्रमुख शासकों से परामर्श करना बेहतर होगा। इसके मुताबिक ग्वालियर, बीकानेर और पटियाला के महाराजाओं और नवानगर के जाम साहब की एक बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की। शासकों के बीच इस बात पर आम सहमति थी कि राज्य को भारत सरकार के अधीन ले आया जाना चाहिए। उस समय की परिस्थिति में फरीदकोट के राजा के पास कोई विकल्प नहीं था। उनकी सहमति के बाद फरीदकोट रियासत का प्रशासन भारत सरकार के नियंत्रण में आ गया।

मेनन की प्रेरणा से राजस्थान और त्रावणकोर-कोचीन ने भी अन्य राज्यों का अनुशरण कर खुद का भारत में विलय कर दिया। मेनन हर घटना से सरदार पटेल, माउंटबेटन और गांधीजी को अवगत कराते रहे। मंजिल कठिन थी, लेकिन अपने कौशल से मेनन ने वहां तक पहुंचने में कामयाब रहे।

–आईएएनएस

Leave feedback about this

  • Service