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उत्तर प्रदेश में रामपुर सीट पर टिकी निगाहें, उम्मीदवार घोषित करने में उलझा विपक्ष

Eyes set on Rampur seat in Uttar Pradesh, opposition busy in declaring candidate

रामपुर, 12 मार्च । उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट को सियासत की धुरी माना जाता है। कभी आजम खां का दुर्ग कहे जाने वाली इस सीट पर भाजपा ने उपचुनाव में कब्जा कर लिया है। इस सीट पर 50 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम हैं। यहां से 12 बार मुस्लिम चेहरे नुमाइंदगी कर चुके हैं।

2019 में इस सीट से सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां चुनाव जीते थे। लेकिन, सजा होने पर उनकी सदस्यता चली गई थी। 2022 के उपचुनाव में भाजपा ने उनसे यह सीट छीन ली थी। अब यहां से घनश्याम लोधी सांसद हैं। भाजपा ने उन्हें दोबारा उम्मीदवार बनाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने यहां से अभी तक कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि रामपुर लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार मौलाना अबुल कलाम आजाद सांसद बने थे। वह देश के पहले शिक्षा मंत्री भी बने थे। अब तक रामपुर लोकसभा सीट पर 18 चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस ने सर्वाधिक 10 बार जीत दर्ज की है। रामपुर लोकसभा सीट से चार बार भाजपा ने बाजी मारी है। इसके अलावा तीन बार सपा ने जीत का स्वाद चखा है। एक बार जनता पार्टी के खाते में सीट गई है।

भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी की घोषणा के बाद लोगों की निगाहें सपा और बसपा पर टिकी हैं। बसपा यहां पर अभी तक खाता नहीं खोल पाई है। सपा रामपुर लोकसभा सीट से मुस्लिम और हिंदू प्रत्याशी के फेर में उलझी नजर आ रही है।

रामपुर के रहने वाले कादिर का कहना है कि यहां की सियासत में अभी कोई दावेदार दिख नहीं रहा है। आजम खां के जेल जाने के बाद उनका परिवार राजनीति में उतना सक्रिय नहीं है। अगर वह बाहर आ जाते हैं तो चुनाव का रुख बदल सकते हैं।

चमरौआ के करीम का कहना है कि राजनीति में आपसी लड़ाई में रामपुर को काफी नुकसान हुआ है। जो मिलना चाहिए, वो नहीं मिल सका है। सरकार राशन दे रही है। यहां पर रोजगार की दरकार अभी भी है। स्वार के रहने वाले रमेश कहते हैं कि राशन भी मिल रही है और गुंडागर्दी भी रुकी है। बस, रोजगार के लिए सरकार को काम करना पड़ेगा।

दशकों से रामपुर की राजनीति को कवर करने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विपिन शर्मा कहते हैं कि मुस्लिम बाहुल्य रामपुर लोकसभा सीट पर आजादी से लेकर अब तक के रिकॉर्ड को देखें तो यहां सामान्य और उप चुनाव दोनों मिलाकर 18 बार इलेक्शन हुआ है, जिसमें 10 बार कांग्रेस जीती है। जबकि, चार बार भाजपा, तीन बार सपा और एक बार जनता पार्टी ने परचम फहराया है।

2019 के चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था। इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है। लेकिन, अभी यह तय नहीं हो पा रहा है कि सीट सपा के खाते में जाएगी या कांग्रेस के। दोनों ही अपने-अपने स्तर से सीट पर दावा जता रहे हैं। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और गठबंधन के बीच होना है। बेशक, वर्तमान में भाजपा के पास सीट है। लेकिन, आजम खां का गढ़ और कांग्रेस के गठबंधन के चलते यहां भाजपा का कमल खिलना आसान नहीं माना जा रहा है।

चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो रामपुर सीट मुस्लिम बाहुल्य है। अब तक के रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो भले ही सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने सीट जीती हो, लेकिन चार बार भाजपा ने भी बाजी मारी है। भाजपा की नजर मुस्लिम वोटरों पर भी है। इस सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक साबित होंगे।

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