फतेहाबाद के टोहाना में 4 जनवरी को होने वाली राष्ट्रीय स्तर की किसान महापंचायत की तैयारी में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) हरियाणा ने किसानों को संगठित करने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इस पहल के तहत एसकेएम के सदस्य भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने करनाल में एक बैठक की, जिसमें तीन जिलों के पदाधिकारियों ने भाग लिया।
बीकेयू के प्रदेश अध्यक्ष रतन मान ने किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने कार्रवाई में देरी जारी रखी तो इसके “गंभीर परिणाम” होंगे।
बैठक में किसानों ने सरकार के खिलाफ नारे लगाए और हरियाणा में 24 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदने के उसके दावों को खारिज कर दिया। मान ने मुख्यमंत्री पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया।
मान ने मांग की, ‘‘झूठे बयान देने के बजाय, मुख्यमंत्री को एमएसपी कानून के लिए केंद्र सरकार से गारंटी पत्र हासिल करना चाहिए।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार लगातार किसानों के मुद्दों की उपेक्षा कर रही है, जिससे उन्हें देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
उन्होंने किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल के बिगड़ते स्वास्थ्य पर भी चिंता व्यक्त की, जो किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए एक महीने से अधिक समय से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं।
केंद्र सरकार की उदासीनता को जिम्मेदार ठहराते हुए मान ने कहा, “सरकार की हठधर्मिता के कारण दल्लेवाल जैसे नेताओं के पास अतिवादी कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।”
मान ने टोहाना में 4 जनवरी को होने वाली किसान महापंचायत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे किसानों की एकता और ताकत का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन बताया। उन्होंने किसानों से बड़ी संख्या में इसमें शामिल होकर इसे सफल बनाने का आग्रह किया।
मान ने कहा, “टोहाना किसान महापंचायत में बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह और देश भर के कई अन्य नेता शामिल होंगे। पंजाब से भी बड़ी संख्या में किसानों के शामिल होने की उम्मीद है।”
उन्होंने घोषणा की कि अपनी मांगों पर रणनीति बनाने के लिए 9 जनवरी को पंजाब के मोगा में पंजाब-हरियाणा के किसानों की एक संयुक्त बैठक भी आयोजित की जाएगी।
एमएसपी पर कानूनी गारंटी की किसानों की प्राथमिक मांग को दोहराते हुए मान ने जोर दिया कि चाहे इसके लिए कितनी भी कुर्बानी देनी पड़े, आंदोलन पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने भाजपा सरकार पर पारंपरिक अनाज मंडियों को खत्म करने के उद्देश्य से नीतियां बनाने का भी आरोप लगाया, जिससे किसानों की आजीविका और भी खतरे में पड़ गई।
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