December 4, 2024
National

पराली हटाने के लिए किसानों को प्रति एकड़ ढाई हजार रुपए की मदद मिले : राघव चड्ढा

नई दिल्ली, 3 दिसंबर। सर्दियों में होने वाले वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाए जाने को एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। दिल्ली और उत्तर भारत के वायु प्रदूषण पर मंगलवार को आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि किसान अपनी खुशी से पराली नहीं जलता है बल्कि मजबूरी में उसे ऐसा करना पड़ता है। उत्तर भारत में वायु प्रदूषण को लेकर राघव का कहना था कि पूरे उत्तर भारत ने धुएं की चादर ओढ़ रखी है। हर सांस में अपने साथ हम न जाने कितनी बीड़ी सिगरेट का धुआं ले जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली का मुद्दा नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत का मुद्दा है। वायु प्रदूषण कोई सरहद नहीं समझता।

राज्यसभा में बोलते हुए राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली से ज्यादा प्रदूषण आज भागलपुर, भिवानी, मुजफ्फरनगर, हापुड़, नोएडा, विदिशा, आगरा, फरीदाबाद जैसे कई इलाकों में है।

राघव चड्ढा ने राज्यसभा में कहा कि वायु प्रदूषण का सारा दोष देश के किसानों के ऊपर मढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि, मैं आज देश के किसानों की बात उठाना चाहता हूं। आईआईटी ने बताया है कि पराली जलाना प्रदूषण के कई कारणों में से एक है, लेकिन यह वायु प्रदूषण का इकलौता कारण नहीं है। चड्ढा ने कहा कि पूरा साल तो हम कहते हैं कि किसान हमारा अन्नदाता है, लेकिन जैसे ही नवंबर का महीना आता है तो हम कहने लगते हैं कि किसान पर जुर्माना लगाया जाए। उन्होंने कहा कि किसान मजबूरी में पराली जलाते हैं।

राघव चड्ढा ने राज्यसभा को बताया कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पराली जलाए जाने की घटनाएं बढ़ी हैं। वहीं पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी से अधिक की कमी देखी गई। उन्होंने कहा कि पंजाबियों की खुराक चावल नहीं है, देश की आवश्यकता पूरी करने के लिए पंजाब ने धान की खेती की। इससे हमारा नुकसान हुआ है, जलस्तर नीचे चला गया। धान की फसल काटने के बाद जो पराली बचती है उसे हटाने के लिए केवल 10 से 12 दिन होते हैं क्योंकि अगली फसल बोनी होती है। मशीनों से पराली निकलने पर प्रति एकड़ 2 से 3 हजार रुपए का खर्च आता है, इसलिए किसान को मजबूरन पराली जलानी पड़ती है।

राघव चड्ढा ने कहा कि इसके लिए मैं एक समाधान लेकर आया हूं। उन्होंने कहा कि पराली हटाने के लिए केंद्र सरकार किसानों को प्रति एकड़ 2000 रुपए की मदद दे और राज्य सरकार इसमें 500 रुपए की मदद देगी तो इस समस्या का अल्पकालीन समाधान निकाला जा सकता है।

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