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अप्रैल-अक्टूबर तक राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष के लक्ष्य का 46.5 प्रतिशत रहा

Fiscal deficit till April-October was 46.5 percent of the target of the current financial year.

नई दिल्ली, 30 नवंबर । हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों (अप्रैल-अक्टूबर) के अंत में केंद्र का राजकोषीय घाटा पूरे साल के लक्ष्य का 46.5 प्रतिशत रहा।

यह सरकार की मजबूत आर्थिक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है। सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर लाना है, जो 2023-24 में 5.6 प्रतिशत था।

महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल मिलाकर राजकोषीय घाटा सरकार के व्यय और राजस्व के बीच का अंतर इस साल अप्रैल-अक्टूबर के दौरान 7,50,824 करोड़ रुपये था।

2024-25 के पहले सात महीनों के लिए केंद्र सरकार के राजस्व-व्यय के आंकड़ों से पता चला है कि शुद्ध कर राजस्व लगभग 13 लाख करोड़ रुपये और चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान का 50.5 प्रतिशत था।

सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को 16.13 लाख करोड़ रुपये पर सीमित रखना है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के दौरान 1 अप्रैल से 10 नवंबर तक भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर शामिल हैं, 15.4 प्रतिशत बढ़कर 12.1 लाख करोड़ रुपये हो गया।

2023-24 के केंद्रीय बजट में प्रत्यक्ष संग्रह का लक्ष्य 18.23 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था और बाद में संशोधित अनुमान (आरई) में इसे बढ़ाकर 19.45 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।

सीबीडीटी ने कहा कि रिफंड के बाद अनंतिम प्रत्यक्ष कर संग्रह बजट अनुमान से 7.40 प्रतिशत और संशोधित अनुमान से 0.67 प्रतिशत अधिक रहा है।

इसी तरह, आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के कारण जीएसटी संग्रह में भी शानदार वृद्धि हुई है।

कर संग्रह में उछाल से सरकार के खजाने में अधिक धनराशि आती है, जिससे सरकार को आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निवेश में मदद मिलती है।

इससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने और अर्थव्यवस्था के आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में भी मदद मिलती है।

कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ता है, जिससे बैंक के पास बड़ी कंपनियों के लिए उधार लेने और निवेश करने के लिए अधिक पैसा बचता है।

इससे आर्थिक विकास दर बढ़ती है और अधिक नौकरियां पैदा होती हैं। कम राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति दर को भी नियंत्रित रखता है, जिससे अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलती है।

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