हैदराबाद, 26 अप्रैल । दो दशकों में पहली बार, तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) का परिवार चुनावी मैदान में नहीं है। तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के संस्थापक के परिवार के किसी भी सदस्य ने राज्य में 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन नहीं किया है।
2001 में टीआरएस (अब बीआरएस) के गठन के बाद यह पहला मौका है जब केसीआर परिवार चुनावी मुकाबले से बाहर है। पूर्व मुख्यमंत्री या उनके परिवार के सदस्य ने 2004 के बाद हर बार लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ा।
तेलंगाना आंदोलन को फिर से चलाने व अपनी पार्टी टीआरएस बनाने के लिए केसीआर ने तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) से इस्तीफा दे दिया था और करीमनगर से लोकसभा और सिद्दीपेट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। वह दोनों सीटों से चुने गए, लेकिन बाद में सिद्दीपेट सीट छोड़ दी और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में मंत्री बने।
केसीआर के भतीजे और टीआरएस नेता हरीश राव उपचुनाव में सिद्दीपेट से चुने गए।
तेलंगाना मुद्दे पर कांग्रेस के साथ मतभेद के बाद 2006 और 2008 में करीम नगर में हुए दो उपचुनावों में टीआरएस संस्थापक ने जीत हासिल की।
2009 में केसीआर महबूबनगर से लोकसभा के लिए चुने गए। इसी कार्यकाल के दौरान वह तेलंगाना राज्य के लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहे। केसीआर के बेटे के.टी. रामा राव ने 2009 के चुनाव में सिरसिला विधानसभा सीट से जीत के साथ चुनावी शुरुआत की और 2010 के उपचुनाव में उन्होंने यह सीट बरकरार रखी।
2014 में केसीआर ने मेडक से लोकसभा और गजवेल से विधानसभा का चुनाव लड़ा। वे दोनों जगहों से निर्वाचित हुए। 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में टीआरएस को बहुमत मिलने पर उन्होंने नए राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनने के लिए मेडक सीट छोड़ दी।
उसी चुनाव में, केसीआर की बेटी कविता निज़ामाबाद से लोकसभा के लिए चुनी गईं। केसीआर के बेटे और भतीजे, एक बार फिर क्रमशः सिरसिला और सिद्दीपेट से विधानसभा के लिए चुने गए और उनके मंत्रिमंडल में मंत्री बने।
टीआरएस ने 2018 के चुनाव में सत्ता बरकरार रखी। कविता 2019 के चुनावों में भाजपा के धरमपुरी अरविंद से निज़ामाबाद लोकसभा सीट हार गईं। बाद में वह विधान परिषद के लिए चुनी गईं।
2022 में, केसीआर ने राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए टीआरएस का नाम बदलकर बीआरएस कर दिया। लेकिन राज्य में 10 साल तक शासन करने के बाद, पार्टी पिछले साल के अंत में कांग्रेस से चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई।
केसीआर ने दो विधानसभा सीटों गजवेल और कामारेड्डी से चुनाव लड़ा। उन्होंने गजवेल को बरकरार रखा, लेकिन कामारेड्डी से पराजित हो गए। 1985 के बाद उनके लिए यह पहली चुनावी हार थी। केटीआर और हरीश राव ने अपनी-अपनी सीटें बरकरार रखीं।
इस समय चल रहे लोकसभा चुनाव में संकेत मिल रहा था कि कविता फिर से निज़ामाबाद से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन केसीआर ने उन्हें मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया। कविता को हाल ही में कथित दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में गिरफ्तार किया गया है।
ऐसी भी अटकलें थीं कि केसीआर मेडक या मलकजगिरी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन उन्होंने राज्य की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया।
Leave feedback about this