विपक्षी भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में वन माफिया की अनियंत्रित गतिविधियों पर चिंता जताई है तथा राज्य सरकार पर बड़े पैमाने पर अवैध वृक्ष कटाई की बार-बार हो रही घटनाओं के बावजूद घोर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विवेक शर्मा ने सरकार के विरोधाभासी रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा, “जबकि राज्य सरकार हरित क्षेत्र में 28 प्रतिशत की वृद्धि का दावा कर रही है, वन माफिया व्यवस्थित रूप से समृद्ध वन भूमि को बंजर भूमि में बदल रहे हैं।” एक बड़े मामले पर प्रकाश डालते हुए शर्मा ने कहा कि स्वारघाट वन प्रभाग में 3,117.60 वर्ग किलोमीटर में 18 करोड़ रुपये मूल्य के खैर के पेड़ों की अवैध कटाई की गई है। बताया जाता है कि मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है।
चंबा के हिमगिरी क्षेत्र में कश्मल नामक पौधे को अंधाधुंध तरीके से उखाड़ा जा रहा है। इसकी औषधीय जड़ें 400 से 500 साल पुरानी हैं। आठ क्विंटल जड़ें जब्त की गई हैं, हालांकि वास्तविक नुकसान इससे कहीं अधिक माना जा रहा है।
सिरमौर जिले के पांवटा साहिब डिवीजन में पिछले तीन सालों में 14 एफआईआर दर्ज की गई हैं, क्योंकि 1 करोड़ रुपये से ज़्यादा की लकड़ी अवैध रूप से काटी गई है। 3 अप्रैल को बेहराल बीट में 30 खैर के पेड़ काटे गए। चौंकाने वाली बात यह है कि हिमाचल-उत्तराखंड सीमा पर एक प्रमुख वन निकास बिंदु पर सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था, जिससे माफिया को भागने में मदद मिली। दोषियों के खिलाफ़ कार्रवाई अभी भी लंबित है।
चौपाल क्षेत्र, खास तौर पर उत्तराखंड सीमा से सटा थरोच भी खतरे में है। शर्मा ने आरोप लगाया कि अवैध कटाई की अनुमति देने के लिए वन अधिकारियों को रिश्वत दी जा रही है और एक खास समुदाय को वन भूमि पर अतिक्रमण करने की अनुमति दी जा रही है।
ऊना बैरियर पर अवैध लकड़ी से लदे ट्रक कथित तौर पर 10,000 रुपये की रिश्वत लेकर पंजाब में घुस जाते हैं। मंडी जिले के धरमपुर इलाके में बहरी और खरोट गांवों में अवैध वन डिपो सामने आए हैं, जिससे लकड़ी तस्करों की अनियंत्रित गतिविधियों का खुलासा हुआ है। भाजपा ने तत्काल कार्रवाई और जवाबदेही की मांग की है, और इस स्थिति को हिमाचल की पारिस्थितिकी विरासत के लिए गंभीर खतरा बताया है।
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