भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, शिमला में “प्रस्तावना और मूल संरचना सिद्धांत” पर चौथा न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर वार्षिक विधि व्याख्यान दिया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने भारत के संवैधानिक ढाँचे में प्रस्तावना और मूल संरचना सिद्धांत के केंद्रीय महत्व पर विचार किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रस्तावना के प्रारंभिक शब्द “हम, भारत के लोग” संविधान की नींव के रूप में जनता की सामूहिक इच्छा को स्थापित करते हैं। उन्होंने कहा कि संवैधानिक समझ को गहरा करने के लिए विधि शिक्षा में मूल संरचना सिद्धांत पर एक व्यापक विषय शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने विभिन्न न्यायक्षेत्रों से तुलनात्मक अंतर्दृष्टि प्राप्त की और इस बात पर ज़ोर दिया कि भारतीय संविधान स्वाभाविक रूप से समाजवादी और जनोन्मुखी है। उन्होंने न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर को भी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनके न्यायिक दर्शन और मानवीय दृष्टिकोण ने भारत के संवैधानिक और सामाजिक परिदृश्य को गहराई से आकार दिया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों को “मध्यस्थता के विशेष संदर्भ में एडीआर का उभरता महत्व” विषय पर भी संबोधित किया। उन्होंने मध्यस्थता के बढ़ते महत्व और संस्थागत एवं तदर्थ मध्यस्थता के बीच के अंतर पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि भविष्य में मध्यस्थता विवाद समाधान का एक लोकप्रिय माध्यम बनती जाएगी।
न्यायमूर्ति संधावालिया ने अध्यक्षीय भाषण देते हुए न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर के न्यायशास्त्र, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उनकी प्रगतिशील व्याख्याओं पर पुनर्विचार किया, जिसने मौलिक अधिकारों और मानवीय गरिमा के दायरे का विस्तार किया। उन्होंने ज़मानत न्यायशास्त्र, जेल सुधारों और समाज के हाशिए पर पड़े तथा वंचित वर्गों के संरक्षण में न्यायमूर्ति अय्यर के ऐतिहासिक योगदान पर प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम में हिमाचल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशगण उपस्थित थे, जिनमें न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल, न्यायमूर्ति संदीप शर्मा, न्यायमूर्ति रंजन शर्मा, न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी, न्यायमूर्ति राकेश कैंथला, न्यायमूर्ति जिया लाल भारद्वाज और न्यायमूर्ति रोमेश वर्मा शामिल थे।

