श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रघुवीर सिंह ने तख्त श्री केशगढ़ साहिब में नवनियुक्त जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह की ताजपोशी की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यह नियुक्ति सिख मर्यादा के अनुरूप नहीं हुई है। उनके बयान के बाद सिख संगत में इस विषय पर चर्चा तेज हो गई है।
ज्ञानी रघुवीर सिंह ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत के दौरान स्पष्ट किया कि उन्हें जत्थेदार की पदवी से सेवा मुक्त करने पर कोई आक्रोश नहीं है और वह अब भी हेड ग्रंथि के रूप में गुरु घर की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने नई नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह सिख परंपराओं का उल्लंघन है। बीते दिनों तख्त श्री केशगढ़ साहिब में नए जत्थेदार की चोरी-छिपे हुई ताजपोशी पर सिख पंथ में सवाल उठना स्वाभाविक है।
उन्होंने कहा कि जब भी किसी जत्थेदार की ताजपोशी होती है, तो सिख समुदाय की विभिन्न संस्थाओं- निहंग जत्थेबंदियों, टकसालों, सभा समितियों और बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया जाता है। अखबारों में विज्ञापन दिए जाते हैं और फिर मर्यादा के अनुसार जत्थेदार की दस्तारबंदी (पगड़ी बांधने की रस्म) होती है। इसके अलावा, सचखंड श्री हरमंदिर साहिब, श्री अकाल तख्त साहिब और अन्य तख्तों के हेड ग्रंथियों की उपस्थिति में यह प्रक्रिया पूरी की जाती है।
उन्होंने कहा कि इसमें शिरोमणि अकाली दल का नुमाइंदा भी दस्तार (पगड़ी) लेकर पहुंचता है, लेकिन सबसे पहले सचखंड श्री हरमंदिर साहिब का हेड ग्रंथी श्री अकाल तख्त साहिब का हेड ग्रंथी और श्री अकाल तख्त साहिब का जत्थेदार उन्हें दस्तार (पगड़ी) देता है। इसके साथ श्री अकाल तख्त साहिब से आदेश जारी होता है, फिर संगत जयकारा लगाती है। इसके बाद ताजपोशी होती है।
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद तख्त श्री केशगढ़ साहिब में ज्ञानी कुलदीप सिंह की ताजपोशी बिना पारंपरिक प्रक्रियाओं का पालन किए हुई है। न तो वहां गुरु साहिब की उपस्थिति थी, न अस्त्र-शस्त्र सजाए गए थे। यहां तक कि खाली पालकी को मत्था टेकने की परंपरा भी निभाई गई, जो सिख मर्यादा के खिलाफ है।