रामपुर, 20 अक्टूबर । समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान की राजनीति लगातार संकट से जूझ रही है। दो जन्म प्रमाणपत्र मामले में आजम और उनकी पत्नी पुत्र को सात साल की जेल हो जाने के बाद सवाल उठ रहा है कि उनकी राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा।
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि आजम खान और उनकी पत्नी, पुत्र के सजा होने के बाद खान के करीब 45 साल पुराने सियासी भविष्य पर ग्रहण लग चुका है। अभी तक जो नजर आ रहा है उसमें खान परिवार जहां 2024 लोकसभा और 2027 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सकेगा। उनके बड़े पुत्र अदीब आजम भी सियासत से दूर रहे है। बहू ने भी कभी राजनीति में दखल नहीं दिया है।
रामपुर के राजनीतिक विश्लेषक विपिन शर्मा कहते हैं कि सपा नेता आजम खान का करीब 40 साल से ज्यादा का राजनीतिक भविष्य अब ढल रहा है। वह दस बार विधायक, एक दफा सांसद और एक दफा राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। इसके साथ ही चार दफा कैबिनेट मंत्री और एक दफा नेता विरोधी दल भी रह चुके हैं। सपा सरकार में यूपी के मिनी मुख्यमंत्री कहलाए जाने वाले आजम खान सपा सरकार जाने के बाद भाजपा सरकार आने से ही विरोधियों के निशाने पर आ गए थे। लोकसभा चुनाव के दौरान वह कई केसों में घिरते हुए चले गए।
उन्होंने कहा कि आजम अपनी विरासत अपने बेटे अब्दुल्ला आजम को सौंपना चाहते थे लेकिन, बेटे को कम उम्र में चुनाव लड़ाने के चक्कर में दो जन्म प्रमाण पत्र बनवा लिया और पत्नी-बेटे के साथ सात साल की सजा पाकर जेल चले गए। लिहाजा, विरासत कौन संभाले, फिर वही सवाल खड़ा हो गया है। क्योंकि, आजम के बड़े बेटे को ऐसी कोई दिलचस्पी नहीं, बहू को सियासी बागडोर आजम परिवार सौंपना नहीं चाहता। किसी अन्य को आजम ने अपने कार्यकाल में इतना आगे नहीं बढ़ाया कि वह उनका सियासी वारिश बन सके। लिहाजा, फिर कौन यह यक्ष प्रश्न सा है।
कुछ जानकर कहते हैं कि आजम खान के परिवार पर गौर करें तो उनके बड़े पुत्र की सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ उनके दूसरे पुत्र अब्दुल्ला, अब क्योंकि जेल जा चुके हैं तो ऐसे में वह भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। कुल मिलाकर आजम खान के परिवार में उनके बड़े बेटे की पत्नी यानि आजम खान की बहू ही सियासी तौर से मैदान में उतरने लायक बचती है। लोग अनुमान लगा रहे हैं कि 2024 के चुनाव में आजम खान की बहू को ही आगे लाया जा सकता है।
रामपुर से मौजूदा विधायक आकाश सक्सेना का कहना है कि आजम ने अपने परिवार के अलावा किसी भी मुस्लिम को आगे नहीं बढ़ाया। उसी को आगे बढ़ाया जिससे उनका फायदा हो सके। सहारनपुर में सरफराज के बेटे को एमएलसी इसलिए बनवाया कि उसने उनके विद्यालय में निवेश किया था। इसी प्रकार नसीर खां को विधायक बनवाया। यह इनके यहां काम करता रहा है। उन्होंने रामपुर के प्रतिभा की अनदेखी की है। यहां के मुस्लिमो के साथ सदैव सौतेला व्यवहार किया है। अपने मीडिया प्रभारी फसाद शानो को आगे बढ़ाया है। उनके जरिए बयान दिलवाया। उन्होंने किसी आम मुस्लिम को न तो आगे बढ़ाया न किसी को पद दिलवाया। मुस्लिम को इस्तेमाल करते रहे हैं। उनके ऊपर जो जमीन के 26 मुकदमे हैं वो सभी मुस्लिम है। आधे से ज्यादा मुकदमे मुस्लिम ने कर रखे हैं। कब्रिस्तान की जमीन को इन्होंने लूटा है तो किस बात के मुस्लिम नेता हैं। उ
न्होंने बताया कि सपा मुखिया का आरोप बिल्कुल निराधार है। जितने लोगों ने मुकदमे किए हैं वो सभी मुस्लिम हैं। अखिलेश के बयान से रामपुर के मुस्लिम काफी नाराज हैं।
गौरतलब है कि सपा के पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम के दो जन्म प्रमाणपत्र होने के मामले में एमपी-एमएलए (मजिस्ट्रेट ट्रायल) कोर्ट ने सपा नेता आजम खां, उनकी पत्नी पूर्व विधायक डॉ. तजीन फात्मा और पुत्र अब्दुल्ला आजम को सात-सात कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने तीनों पर 50 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सजा सुनाए जाने के बाद तीनों न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जिला जेल भेज दिया गया।