भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की दो सदस्यीय टीम ने आज कुल्लू शहर के आंतरिक अखाड़ा बाजार क्षेत्र में प्रारंभिक आपदा-पश्चात आकलन शुरू किया। यह वह स्थान है जहां दो विनाशकारी भूस्खलन हुए थे जिनमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और तीन घायल हो गए थे।
2 सितम्बर की रात और 4 सितम्बर की सुबह इस क्षेत्र में आपदा आई थी, जिसके कारण विनाश का एक बड़ा निशान और बुरी तरह से क्षतिग्रस्त घर पीछे छूट गए थे।
स्थानीय निवासियों की बढ़ती निराशा के बीच वैज्ञानिक जाँच सामने आ रही है। आंतरिक अखाड़ा बाज़ार के 250 घरों में रहने वाले लगभग 1,000 लोग अब खुद को एक संकटपूर्ण स्थिति में पा रहे हैं। निवासियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कुल्लू के उपायुक्त से मुलाकात की और इस आपदा के लिए मानवीय लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराया।
उनकी चिंताएँ अपर्याप्त जल निकासी और सीवरेज बुनियादी ढाँचे को लेकर हैं, जो उनके पड़ोस के सामने मठ क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों से और भी जटिल हो गया है। उनका कहना है कि इन कारकों ने भूवैज्ञानिक खतरों के प्रति उनके जोखिम को खतरनाक रूप से बढ़ा दिया है।
कुल्लू की घटना कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि पूरे राज्य में एक चिंताजनक प्रवृत्ति का हिस्सा है। किन्नौर, चंबा, शिमला और धर्मशाला जैसे ज़िलों से भी ऐसी ही रिपोर्टें एक ही तस्वीर पेश करती हैं — अनियोजित विकास, नाज़ुक ढलानों पर अवैध निर्माण और खराब जल प्रबंधन। इन मुद्दों को बार-बार होने वाले भूस्खलन का मूल कारण बताया जाता है।

