कांग्रेस सरकार ने राज्य की एकमात्र सिंचाई परियोजना शाह नहर की मरम्मत के लिए अभी तक धन मुहैया नहीं कराया है, जो पिछले साल मानसून के दौरान क्षतिग्रस्त हो गई थी। पंजाब में ब्यास के किनारे नहर का एक हिस्सा पिछले साल अचानक आई बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था।
शाह नहर हिमाचल प्रदेश के हिस्से का पानी पोंग डैम से कांगड़ा जिले के नूरपुर और इंदौरा इलाकों में कृषि योग्य भूमि तक पहुंचाती है। हालांकि, नहर से सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति पिछले साल अगस्त से बाधित है और मरम्मत का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। किसान सरकार से नहर की मरम्मत के लिए जल्द से जल्द धनराशि जारी करने की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें सिंचाई के लिए पानी मिल सके।
नहर क्षतिग्रस्त होने के कारण कांगड़ा जिले के फतेहपुर और नूरपुर के 30 गांवों को पिछले एक साल से सिंचाई का पानी नहीं मिल रहा है। सूत्रों ने बताया कि करीब 10,000 किसानों को अपने खेतों की सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है।
क्षेत्र में पर्याप्त बारिश न होने से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है। फतेहपुर के किसान कुलवंत सिंह ने बताया कि गेहूं की बुआई का समय शुरू हो रहा है, लेकिन अक्टूबर में अभी तक बारिश नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “नहर का पानी हमारे लिए बहुत मददगार होता, लेकिन पिछले साल नहर क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसकी मरम्मत अभी तक नहीं हुई है। सरकार को तत्काल नहर की मरम्मत करानी चाहिए, ताकि क्षेत्र के किसानों को सिंचाई का पानी मिल सके।”
जल शक्ति विभाग के मुख्य अभियंता सुरेश महाजन ने बताया कि हाल ही में नहर की मरम्मत के लिए सरकार से करीब 2.5 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई है। उन्होंने बताया कि टेंडर जारी किए जा रहे हैं और जल्द ही मरम्मत का काम शुरू हो जाएगा।
महाजन ने बताया कि ब्यास नदी के किनारे नहर की मरम्मत के लिए 10 करोड़ रुपए का अनुमान राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) को भेजा गया है। उन्होंने बताया कि उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री इस मामले को एसडीएमए के समक्ष उठा रहे हैं और नहर की मरम्मत के लिए जल्द ही धनराशि जारी होने की उम्मीद है।
अग्निहोत्री ने इस वर्ष अगस्त में नहर के क्षतिग्रस्त हिस्से का निरीक्षण किया था और जल शक्ति विभाग के अधिकारियों को इसकी मरम्मत का कार्य तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया था।
सूत्रों ने बताया कि जल शक्ति विभाग के अधिकारियों ने नहर की मरम्मत के लिए शुरू में करीब 25 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया था, लेकिन बाद में राज्य सरकार से धन की उपलब्धता को देखते हुए इसे घटाकर 10 करोड़ रुपये कर दिया। क्षेत्र के किसान नहर को हुए नुकसान के लिए अवैध खनन को भी जिम्मेदार ठहराते हैं।