September 9, 2025
National

स्वतंत्रता संग्राम के महानायक गोविंद बल्लभ पंत, आजादी के बाद बने यूपी के पहले मुख्यमंत्री

Govind Ballabh Pant, the great hero of the freedom struggle, became the first Chief Minister of UP after independence

उत्तर प्रदेश’ भारतीय राजनीति इतिहास का एक ऐसा केंद्र है, जहां से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कई प्रमुख योद्धा निकले हैं। उन्हीं में से एक थे गोविंद बल्लभ पंत, जो भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तंभ थे। उनकी दूरदर्शिता, समर्पण और नेतृत्व ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को बल प्रदान किया, बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत के गृह मंत्री के रूप में उनके कामों ने देश की प्रशासनिक और सामाजिक नींव को मजबूत किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

10 सितंबर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में पैदा हुए गोविंद बल्लभ पंत ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और वकालत शुरू की, लेकिन देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना ने उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन की ओर प्रेरित किया। कहा जाता है कि छात्र जीवन में ही वे बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन से प्रेरित हुए और 1905 में काशी में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लिया था।

आजादी की लड़ाई के दौरान उन्हें कई बार गिरफ्तार कर जेल में डाला गया और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920-22) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) में भाग लिया। इसके अलावा, उन्होंने काकोरी कांड (1925) के क्रांतिकारियों का मुकदमा लड़ा और उनकी पैरवी भी की। यही नहीं, उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में सामाजिक सुधारों, विशेषकर ‘कुली बेगार प्रथा’ (मजदूरों से जबरन बेगार कराने की प्रथा) के खिलाफ आंदोलन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही।

जब 1928 में साइमन कमीशन संवैधानिक सुधारों का अध्ययन और सिफारिश करने भारत आया, तो लगभग सभी भारतीय राजनीतिक गुटों ने इसका बहिष्कार किया। पंत ने लखनऊ में इसके खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया था, जहां पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया था। पंत ने ‘नमक सत्याग्रह’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लिया। वे उन कई नेताओं में से एक थे, जिन्हें 1930 में ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की योजना बनाने के लिए और फिर 1933, 1940 और 1942 में आंदोलन से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था।

स्वतंत्रता की लड़ाई के अलावा गोविंद बल्लभ पंत का कांग्रेस में भी कद बढ़ता गया। गोविंद बल्लभ पंत 1926 में संयुक्त प्रांत प्रांतीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने गए। 1931 में वे कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य बने, जिससे वे राष्ट्रीय नेतृत्व के करीब आए। 1937 में वे संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री बने। हालांकि, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की जबरन भागीदारी के विरोध में कांग्रेस मंत्रिमंडलों के सामूहिक इस्तीफे तक वे इस पद पर रहे। 1946 में वे राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य बने।

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद गोविंद बल्लभ पंत संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के पहले मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में भूमि सुधार, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया। उन्होंने हिंदी को उत्तर प्रदेश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसके बाद 1955 से 1961 तक वे भारत के गृह मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा, प्रशासनिक सुधार और राज्यों के पुनर्गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत भाषायी आधार पर राज्यों का गठन उनके नेतृत्व में हुआ। पंत ने शिक्षा के प्रसार और सामाजिक समानता पर जोर दिया। वे महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों के समर्थक थे। उनकी प्रेरणा से उत्तराखंड में कई शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई।

सरकार ने 1957 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। गोविंद बल्लभ पंत का निधन 7 मार्च 1961 को हुआ। उनकी मृत्यु ने भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया। उनके निधन के बाद देशभर में कई संस्थाओं को उनका नाम दिया गया। इनमें उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय शामिल है।

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