November 25, 2024
National

गुजरात हाईकोर्ट ने लाउडस्पीकर के जरिए अजान के खिलाफ जनहित याचिका खारिज की

अहमदाबाद, 29 नवंबर। गुजरात उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें मस्जिदों से अजान या इस्लामी प्रार्थना के प्रसारण के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी. मायी की पीठ ने याचिका को ”पूरी तरह गलत” करार दिया।

बजरंग दल के नेता शक्तिसिंह जाला की जनहित याचिका में कहा गया कि लाउडस्पीकर के जरिए अजान देने से “ध्वनि प्रदूषण” होता है, जिससे आम जनता, विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और अन्य तरह की असुविधाएं होती हैं।

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के दावों में अनुभवजन्य साक्ष्य और वैज्ञानिक आधार का अभाव है। पीठ ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि अजान, जो आमतौर पर अधिकतम 10 मिनट तक चलती है, डेसिबल स्तर तक पहुंचने की संभावना नहीं रहती है, जो ध्वनि प्रदूषण का खतरा बन सके।

इसने याचिकाकर्ता की यह स्थापित करने की क्षमता के बारे में संदेह जताया कि अजान के दौरान लाउडस्पीकर के जरिए बढ़ाई गई मानवीय आवाज, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करने के लिए पर्याप्त डेसिबल उत्पन्न कर सकती है।

अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से मंदिर के अनुष्ठानों के दौरान घंटियों और घंटियों की आवाज़ के बारे में भी सवाल किया।

पीठ ने पूछा, “आपके मंदिर में सुबह की आरती भी ढोल-नगाड़ों और संगीत के साथ तड़के 3 बजे ही शुरू हो जाती है। उस समय बहुत से लोग सो रहे होते हैं। क्या इससे शोर नहीं होता? क्या आप दावा कर सकते हैं कि घंटे और घड़ियाल की ध्‍वनि केवल मंदिर परिसर तक ही सीमित है? कीर्तन-भजन, आठ घंटे चलने वाले अष्‍टयाम या 24 घंटे चलने वाले नवाह के लाउडस्पीकर के जरिए प्रसारण को ध्वनि प्रदूषण का कारण मान लिया जाए, तब आप क्‍या कहेंगे?”

ध्वनि प्रदूषण को मापने के लिए वैज्ञानिक तरीकों के अस्तित्व पर प्रकाश डालते हुए यह नोट किया गया कि जनहित याचिका में इस दावे को साबित करने के लिए ठोस डेटा या अध्ययन-निष्‍कर्ष प्रस्तुत करने की जरूरत है, ताकि प्रमाण रहे कि 10 मिनट की अजान से ध्वनि प्रदूषण हो सकता है।

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