अरावली पहाड़ियों की परिभाषा से जुड़े मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई करेगा, जिसमें पर्यावरण के लिहाज से नाजुक इस पहाड़ी शृंखला की सुरक्षा को लेकर चिंताओं पर विचार किए जाने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पब्लिश कॉजलिस्ट के मुताबिक, सीजेआई सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच सोमवार को “इन रे: अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा और संबंधित मुद्दे” टाइटल वाली स्वतः संज्ञान रिट याचिका पर सुनवाई करेगी।
पर्यावरण के लिहाज से नाजुक अरावली रेंज की सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं और इसे बचाने के लिए सरकार के बार-बार के आश्वासन के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर खुद ही संज्ञान लिया है। अवैध खनन पर रोक लगाने और पर्यावरण सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एक बड़े कदम के तहत, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य सरकारों को अरावली में किसी भी नई माइनिंग लीज देने पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्देश दिया है।
मंत्रालय ने कहा कि यह रोक अरावली के पूरे इलाके में समान रूप से लागू होगी, जिसमें दिल्ली से गुजरात तक की पर्वत शृंखला शामिल है। मंत्रालय ने कहा कि इसका मकसद “इस पर्वत शृंखला की अखंडता को बनाए रखना और बिना रोक-टोक वाली खनन गतिविधियों को खत्म करना है। संरक्षण फ्रेमवर्क को और मजबूत करते हुए मंत्रालय ने इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन को पूरे अरावली रेंज में ऐसे और इलाकों और जोन की पहचान करने का निर्देश दिया है, जहां खनन पर रोक लगनी चाहिए।
कांग्रेस नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने रविवार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर अरावली पहाड़ियों की हालिया नई परिभाषा पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने दावा किया कि नई परिभाषा उनके क्लासिफिकेशन को 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाले लैंडफॉर्म तक सीमित करती है।
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर कहा, “यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री को मेरा सबसे नया लेटर है, जिसमें अरावली की विनाशकारी नई परिभाषा पर चार सवाल पूछे गए हैं।”


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