सत्र 2025-27 के लिए दो वर्षीय डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन (डी.एल.एड) पाठ्यक्रम में प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने में ‘देरी’ के कारण राज्य के स्व-वित्तपोषित कॉलेजों ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उनका तर्क है कि इस देरी के कारण प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष में अनिवार्य 200 शिक्षण दिवसों की पूर्ति करना असंभव हो जाएगा।
हरियाणा स्ववित्तपोषित निजी महाविद्यालय एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने शिक्षा विभाग के सचिव और एससीईआरटी (राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद), हरियाणा के निदेशक को 10 दिनों के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश खोला ने कहा, “2023-25 सत्र के दौरान भी इसी तरह की देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षणिक नुकसान हुआ और राज्य भर में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी हो गई। पिछले साल भी, अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही प्रवेश हुए थे। डी.एल.एड. पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश प्रक्रिया अप्रैल में शुरू होती है और जुलाई तक पूरी हो जाती है। हालाँकि, अगस्त का आधा से ज़्यादा महीना बीत चुका है, और अधिकारियों ने अभी तक प्रक्रिया शुरू नहीं की है। 350 से ज़्यादा स्व-वित्तपोषित कॉलेज यह पाठ्यक्रम चला रहे हैं, जिनकी प्रवेश क्षमता 20,000 से ज़्यादा छात्रों की है।”
उन्होंने आगे कहा कि अदालत ने पाया कि इस तरह की देरी न केवल निजी कॉलेजों के संचालन को प्रभावित करती है, बल्कि शिक्षा प्रणाली पर भी इसका व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि योग्य शिक्षकों की आपूर्ति बाधित होती है। अदालत ने यह भी कहा कि प्रवेश प्रक्रिया संचालित करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है, जिसे इसे गंभीरता से लेना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को निर्धारित की गई है।
इस बीच, एससीईआरटी की उप निदेशक सरोज कुमारी ने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा निदेशक से अभी तक प्रवेश के संबंध में कोई आधिकारिक निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं।