पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार के 7 अक्टूबर, 2023 के निर्देशों की वैधता को बरकरार रखा है, जिसमें ग्रुप ए और बी के पदोन्नति पदों में अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था। हालांकि, अदालत ने कहा है कि क्रीमी लेयर से संबंधित कर्मचारियों को लाभ से बाहर रखा जाना चाहिए।
निर्देशों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति जगमोहन बंसल ने फैसला सुनाया कि राज्य ने पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने से पहले संवैधानिक पूर्व शर्तों को पूरा किया था। अदालत ने पाया कि मात्रात्मक डेटा एकत्र किया गया था, जो समूह ए और बी के पदोन्नति पदों में एससी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।
याचिकाकर्ताओं ने अन्य बातों के अलावा यह तर्क दिया था कि निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार ग्रुप ए और बी के पदों पर पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करते समय अनुसूचित जातियों के बीच क्रीमी लेयर को बाहर करने में विफल रही है।
दूसरी ओर, राज्य ने अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि ग्रुप ए और बी के पदों पर सीधी भर्ती में 20 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद, अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व कम है, क्योंकि अधिकांश पद पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं और नियमित सीधी भर्ती नहीं हुई है।
प्रतिद्वंद्वी दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति बंसल का मानना था कि राज्य की नीति अनुभवजन्य आंकड़ों और सचेत नीतिगत निर्णय पर आधारित है। न्यायालय ने अनुच्छेद 335 के तहत प्रशासन की दक्षता पर चिंताओं को भी ध्यान में रखा।
बेंच ने कहा कि जब तक उम्मीदवार आवश्यक योग्यता और पात्रता की शर्तें पूरी नहीं करता, तब तक कोई पदोन्नति नहीं होगी। न्यायमूर्ति बंसल ने आरक्षण नीति के कारण प्रशासनिक दक्षता में किसी भी तरह के समझौते की संभावना को खारिज करते हुए कहा, “यदि कोई व्यक्ति पदोन्नति के लिए पात्र नहीं है, तो उसे पदोन्नत नहीं किया जाएगा या यदि वह निर्धारित शर्तों का पालन नहीं करता है तो उसे पदावनत कर दिया जाएगा।”
पीठ ने कहा कि राज्य ने मात्रात्मक डेटा एकत्र करके संविधान के अनुच्छेद 16(4ए) की आवश्यकता और संविधान पीठ के निर्णयों के अधिदेश का अनुपालन किया है।