गद्दी चरवाहों ने राज्य सरकार से हिमाचल प्रदेश राज्य ऊन फेडरेशन को उनके ऊन का वर्गीकरण करने का निर्देश देने की मांग की है, ताकि उन्हें अपने उत्पाद के लिए बेहतर मूल्य मिल सके।
सरकार को लिखे पत्र में घमंतू पशुपालक सभा के अध्यक्ष अक्षय जसरोटिया ने कहा कि महासंघ कच्चा या बिना ग्रेड वाला ऊन बेच रहा है और चरवाहों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा, “चरवाहों को बाजार में अपनी उपज के लिए 40 रुपये प्रति किलो से अधिक नहीं मिल रहा है और कच्चा ऊन खरीदने के बाद महासंघ को भी चरवाहों से अधिक कीमत नहीं मिल पा रही है। हालांकि, अगर महासंघ द्वारा खरीदा गया ऊन ग्रेड वाला है, तो इसकी कीमत कहीं अधिक हो सकती है।”
जसरोटिया ने कहा कि ऊन महासंघ के पास खरीदे गए उत्पाद को धोने के लिए बुनियादी ढांचा है, लेकिन इसका उपयोग नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि चिकनाई रहित धुले हुए ऊन से बाजार में बेहतर कीमत मिल सकती है।
नाम न बताने की शर्त पर फेडरेशन के अधिकारियों ने बताया कि आम तौर पर हिमाचल में उत्पादित ऊन को विनिर्माण इकाइयों द्वारा अन्य ऊन के साथ मिलाया जाता है। “ऊनी परिधान में हिमाचल के ऊन का अनुपात 15 प्रतिशत है। अगर हम ऊन को ग्रेड करते हैं, तो इसका एक बड़ा हिस्सा बिना बिके रह जाएगा। इसके अलावा, धुलाई भी नहीं हो पा रही है क्योंकि निर्माता इसे अपने तरीके से करना पसंद करते हैं,” उन्होंने कहा।
बार-बार प्रयास करने के बावजूद वूल फेडरेशन के महाप्रबंधक दीपक सैनी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने व्हाट्सएप संदेशों का भी जवाब नहीं दिया।
हालांकि, राज्य शेफर्ड एसोसिएशन का दावा है कि हिमाचल के गद्दी चरवाहों द्वारा उत्पादित ऊन जैविक है और इसकी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं किया गया है। जैविक ऊन की कीमत लगभग 70 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रही है। घमंतू पशुपालक सभा के एक पदाधिकारी ने कहा कि उनके पास सीमित संसाधन हैं, लेकिन फिर भी वे कांगड़ा के कुछ इलाकों में उत्पादित ऊन के लिए जैविक ऊन प्रमाणन प्राप्त करने में सक्षम हैं। सरकार राज्य के गद्दी चरवाहों द्वारा उत्पादित संपूर्ण ऊन को जैविक के रूप में प्रमाणित करवा सकती है, जिससे उन्हें अच्छा लाभ मिलेगा।
सूत्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में करीब 5 लाख किलो ऊन का उत्पादन होता है, जिसमें से करीब 1 लाख किलो ऊन राज्य महासंघ खरीदता है। बाकी ऊन दूसरे राज्यों के व्यापारी सीधे चरवाहों से औने-पौने दामों पर खरीद लेते हैं।
सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार ऊन प्रसंस्करण के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए वूल फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा पेश की जा रही विभिन्न परियोजनाओं का लाभ उठाने में विफल रही है, ताकि बाजार में ऊन को बेहतर मूल्य मिल सके।