पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज राज्य कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) लागू करने के सरकार के फैसले की आलोचना की और कहा कि यह एक थोपा हुआ कदम है जो कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने में विफल है।
हुड्डा ने कहा, “सरकार ऐसे समय में जबरन यूपीएस थोप रही है, जब कर्मचारी यूपीएस या एनपीएस दोनों से सहमत नहीं हैं।” उन्होंने कहा, “मांगें लगातार केवल ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) के लिए उठाई जा रही हैं।”
हरियाणा मंत्रिमंडल ने केंद्र की नीति के अनुरूप हाल ही में राज्य सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए यूपीएस शुरू करने को मंजूरी दी है। हालांकि, हुड्डा ने इसे वास्तविक पेंशन योजना के बजाय “भुगतान योजना” बताकर खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा, “यह योजना पेंशन योजना नहीं है, बल्कि भुगतान योजना है, जैसा कि बजट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। भुगतान का मतलब अनिवार्य रूप से एकमुश्त निवेश या जमा से जुड़ा एकमुश्त लाभ है।”
सत्तारूढ़ भाजपा की आलोचना करते हुए हुड्डा ने कहा, पुरानी पेंशन योजना को छीनकर भाजपा सरकार कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को पूरी तरह से खत्म करने पर तुली हुई है।
उन्होंने यूपीएस की अलोकप्रियता के सबूत के तौर पर केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए 1 अप्रैल से 30 जून, 2025 के बीच यूपीएस रोलआउट विकल्प की पेशकश का हवाला दिया। “30 लाख से ज़्यादा केंद्रीय कर्मचारियों में से सिर्फ़ 20,000 ने यूपीएस का विकल्प चुना है। इससे पता चलता है कि कर्मचारी ओपीएस चाहते हैं, न कि एनपीएस या यूपीएस।”
इस अंतर को स्पष्ट करते हुए हुड्डा ने कहा: “ओपीएस स्वचालित डीए संशोधन और वेतन आयोग कार्यान्वयन के साथ अंतिम मूल वेतन का 50% पेंशन के रूप में गारंटी देता है। इसके विपरीत, यूपीएस केवल तभी 50% पेंशन प्रदान करता है जब कोई कर्मचारी 25 साल तक सेवा करता है और कई अन्य शर्तें पूरी करता है।”
उन्होंने आगे कहा: “ओपीएस में कर्मचारी कोई योगदान नहीं करता है। यूपीएस में कर्मचारी को पूरे सेवाकाल में वेतन और डीए का 10% योगदान करना होता है और यह राशि सेवानिवृत्ति, मृत्यु या सेवानिवृत्ति के बाद पांच साल के भीतर भी वापस नहीं की जाती है।”
हुड्डा ने सरकार से आग्रह किया कि वह “अनावश्यक योजनाओं” से ध्यान भटकाना बंद करे तथा इसके बजाय ओपीएस को बहाल करके तथा उनके भविष्य की सुरक्षा करके कर्मचारियों की मांगों को स्वीकार करे।
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