February 26, 2025
Himachal

महाशिवरात्रि से पहले काठगढ़ महादेव मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे सैकड़ों श्रद्धालु, जानें प्राचीन मंदिर का रहस्य

Hundreds of devotees are reaching Kathgarh Mahadev temple for darshan before Mahashivratri, know the secret of the ancient temple

हिमाचल प्रदेश में महाशिवरात्रि पर्व बहुत आस्था और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के पावन अवसर से पहले ही विधानसभा क्षेत्र इंदौरा के काठगढ़ महादेव मंदिर में भक्ति और श्रद्धा का माहौल चरम पर पहुंच गया है। हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु यहां आकर भगवान शिव के दर्शन कर रहे हैं। आखिर क्या है इस प्राचीन मंदिर का रहस्य? क्यों हर वर्ष यहां लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं? आइए जानते हैं इस अद्भुत शिवलिंग और मंदिर से जुड़ी पौराणिक एवं ऐतिहासिक गाथाएं।

शिवपुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच घोर युद्ध छिड़ गया। जब महाप्रलय के आसार नजर आए, तब भगवान शिव ने स्वयं को ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट किया और इस युद्ध को रोक कर दिया। मान्यता है कि जिस स्थान पर उन्होंने यह दिव्य रूप धारण किया, वही स्थान काठगढ़ महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार, इस स्थान पर पहले गुर्जर समुदाय के लोग रहा करते थे। वे अपने दूध के मटके एक विशेष चट्टान पर रखते थे, जो धीरे-धीरे ऊपर उठने लगती थी। तब भैरव जी की कृपा से इसे छोटा कर दिया जाता था, लेकिन यह फिर बढ़ जाता। जब यह बात तत्कालीन राजा को पता चली, तो उन्होंने इस रहस्यमयी चट्टान की खुदाई करवाई और विद्वानों से परामर्श लिया। विद्वानों ने श्रावण मास में शिव पूजन का सुझाव दिया, जिसके बाद यहां शिव-पार्वती की प्रतिमा प्रकट हुई।

इस स्वयंभू शिवलिंग की ऊंचाई 5.5 फीट है और इसके पास ही 2 इंच की दूरी पर एक छोटा पत्थर स्थित है, जिसे माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि हर वर्ष 15 जनवरी तक शिवलिंग और पार्वती शिला के बीच की दूरी कम हो जाती है और फिर धीरे-धीरे बढ़ने लगती है।

महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां चार दिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। दर्शन के लिए भक्तों को कई बार दो से तीन दिन तक कतार में खड़ा रहना पड़ता है। मंदिर की प्रबंधन समिति, जिसकी देखरेख ओमप्रकाश कटोच द्वारा की जाती है, यात्रियों की सुविधाओं के लिए निरंतर कार्य कर रही है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए यहां तीन मंजिला धर्मशाला भी बनाई गई है।

यह मंदिर वैदिक काल से पूजित रहा है, लेकिन इसका पुनर्निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। इतिहासकारों के अनुसार, महाराजा रणजीत सिंह प्रतिवर्ष कांगड़ा, ज्वालामुखी और काठगढ़ महादेव के दर्शन करने आते थे। इतना ही नहीं, वे शुभ कार्यों के लिए यहां के प्राचीन कुएं का जल भी मंगवाते थे, जिसे अत्यंत पवित्र और रोग नाशक माना जाता था।

मान्यता के अनुसार, भगवान राम के अनुज भरत जब अपने ननिहाल कैकयी देश जाते थे, तो वे व्यास नदी पार कर यहां स्नान करते और भगवान शिव की अर्चना करने के बाद ही आगे बढ़ते थे।

लोककथाओं के अनुसार, यह गांव पहले एक बड़ा कस्बा था, जहां न्यायिक फैसले लिए जाते थे। अपराधियों को ‘काठ’ (लकड़ी की बेड़ियों) में बांधा जाता था, जिसके कारण इस स्थान का नाम ‘काठगढ़’ पड़ा।

इतिहासकारों के अनुसार, विश्व विजेता सिकंदर भारत विजय के दौरान जब व्यास नदी तक पहुंचा, तो उसके सैनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया। यह स्थान सिकंदर की वापसी स्थल के रूप में भी जाना जाता है। कई इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर ने यहां शिवलिंग के चारों ओर एक मजबूत दीवार बनवाई थी।

भगवान शिव को अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाला देवता माना जाता है। काठगढ़ महादेव मंदिर में हर वर्ष असंख्य श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होने पर पुनः यहां कृतज्ञता स्वरूप पूजा-अर्चना करते हैं।

काठगढ़ महादेव न केवल पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आस्था और अध्यात्म का अद्भुत संगम भी है। महाशिवरात्रि पर यह स्थान शिवमय हो उठता है और शिवभक्तों की असीम श्रद्धा इसे और भी दिव्य बना देती है।

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