December 26, 2025
National

अरावली क्षेत्र में खनन किया गया तो गंभीर परिणाम होंगे: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

If mining is carried out in the Aravalli region, there will be serious consequences: Jamaat-e-Islami Hind

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर ने अरावली पर्वतमाला के संरक्षण से जुड़े हालिया घटनाक्रमों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अस्पष्ट और गलत नीतिगत फैसले राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर तथा उत्तरी भारत के बड़े हिस्सों के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकते हैं।

मीडिया को जारी किए गए एक बयान में प्रो. सलीम इंजीनियर ने कहा कि अरावली पर्वतमाला सीमित और बहुत अधिक तकनीकी व्याख्याओं के कारण गंभीर पारिस्थितिक खतरे का सामना कर रही है। इनमें दी गई सीमित परिभाषाओं की वजह से अरावली पहाड़ियों के बड़े हिस्से प्रभावी कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले भू-आकृतियों के आधार पर अरावली को परिभाषित करना उसकी पारिस्थितिक निरंतरता की अनदेखी करता है और खनन व व्यावसायिक दोहन को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा कि अरावली एक जीवंत पारिस्थितिक तंत्र है। भूजल पुनर्भरण, जलवायु नियमन और मरुस्थलीकरण की रोकथाम में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जेआईएच के उपाध्यक्ष ने चेतावनी दी कि यदि अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों का विस्तार किया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। इससे भूजल का तीव्र क्षरण होगा, कुएं और पारंपरिक जलस्रोत सूखेंगे, धूल प्रदूषण बढ़ेगा, और राजस्थान, हरियाणा, गुजरात तथा दिल्ली-एनसीआर में जनस्वास्थ्य की स्थिति और खराब होगी। उन्होंने कहा कि इस पारिस्थितिक क्षति का सबसे बड़ा भार किसान, पशुपालक समुदाय और ग्रामीण आबादी को उठाना पड़ेगा।

प्रो. सलीम इंजीनियर ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा हाल ही में नए खनन पट्टों पर प्रतिबंध और अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्रों की पहचान को लेकर दिए गए आश्वासन पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि भले ही आधिकारिक वक्तव्यों में संरक्षण की बात कही जा रही हो, लेकिन अरावली की पुनर्परिभाषा का मूल मुद्दा, जिसे कई विशेषज्ञ संस्थाओं ने खारिज किया है, अब भी अनसुलझा है।

उन्होंने कहा कि केवल घोषणाएं पर्याप्त नहीं हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए विज्ञान-आधारित नीतियां, पारदर्शिता और न्यायिक व विशेषज्ञ सलाह का सम्मान आवश्यक है। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने बिल्कुल सही सवाल उठाया है कि क्या सरकार के कदम नई परिभाषा से पैदा हुए खतरे का वास्तव में समाधान करते हैं या नहीं।

प्रो. इंजीनियर ने कहा कि वैधानिक निकायों और पारिस्थितिकी विशेषज्ञों की चिंताओं की अनदेखी करने से सुरक्षा उपाय कमजोर पड़ते हैं और जनविश्वास को ठेस पहुंचती है।

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