June 23, 2025
Haryana

देवताओं के गुरु से अपने लिए ज्ञान, संतान और धन-धान्य चाहिए तो इन मंदिरों में जाकर करें दर्शन, पूरी होगी हर मनोकामना

If you want knowledge, children and wealth from the Guru of Gods, then visit these temples and have darshan, every wish will be fulfilled

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 9 ग्रहों में से बृहस्पति ग्रह को देवताओं का गुरु बताया गया है। यानी गुरु ग्रह ज्ञान, सोच, संवाद, वाणी, धन, स्वास्थ्य और मान-प्रतिष्ठा के कारक हैं। शास्त्रों के अनुसार देवताओं ने भी भगवान बृहस्पति देव (गुरु) से ही ज्ञान प्राप्त किया था।

सबसे जरूरी बात यह है कि गुरु को ज्योतिष के अनुसार शिक्षा का कारक कहा जाता है। कुंडली में मजबूत बृहस्पति धन और बुद्धि देते हैं। यह व्यक्ति को उच्च ज्ञान, शिक्षा, बुद्धि, और भाग्य का उदय करने वाले हैं। यह जीवन के क्षेत्रों में विस्तार का कारण बनते हैं।

कुंडली में शुभ मंगल जहां आपको सुंदर जीवन साथी प्रदान करता है, वहीं शुभ बृहस्पति की उपस्थिति जातक की शादी को बनाए रखने में मदद करती है।

बृहस्पति वैसे तो सभी ग्रहों में सबसे अधिक लाभकारी माना गया है। लेकिन, कभी-कभी, यह नीच या क्रूर ग्रहों के प्रभाव के कारण प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुरु ग्रह को धनु और मीन राशि का स्वामी कहा जाता है। वहीं मकर इसकी नीच राशि है। ऐसे में किसी भी जातक की कुंडली में गुरु का शनि या केतु के साथ संबंध बेहद बुरा माना जाता है।

ऐसे में जिन जातकों की कुंडली में बृहस्पति कमजोर या नीच के हों उन्हें शक्कर, केला, पीला वस्त्र, केसर, नमक, पीली मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन का दान करना उत्तम माना गया है। इसके साथ ही रक्त दान करने से भी गुरु ग्रह का शुभ लाभ मिलता है। गुरुवार को केले की जड़ की पूजा करना और भगवान विष्णु की पूजा करना, बृहस्पतिवार के व्रत कथा का श्रवण करना, इस दिन उपवास रखना और रात्रि में पीला भोजना करना अच्छा माना गया है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा भी करनी चाहिए।

बृहस्पति को शुभ बनाने के लिए आप अपने माथे पर चंदन का लेप या तिलक लगा सकते हैं। आप पीले रंग के आभूषण जिसमें सोना सबसे शुभ माना जाता है, धारण कर सकते हैं। साथ ही इस दिन पीले परिधान भी धारण कर सकते हैं। गुरुवार को गुरु का दिन माना गया है, इस दिन गाय को चारा खिलाना चाहिए, उसकी सेवा करनी चाहिए, इससे कुंडली में गुरु ग्रह के शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है। इससे नवग्रहों की शांति भी होती है।

वाराणसी यानी भगवान शिव की नगरी, जिस काशी के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ है। यहां भगवान शिव के मंदिर के अलावा गुरु बृहस्पति का भी एक मंदिर है, जो प्राचीन और बेहद प्रसिद्ध है। ज्योतिष की मानें तो जब भोलेनाथ इस काशी नगर को बसा रहे थे, उस वक्त उन्होंने गुरु बृहस्पति को भी यहां रहने की जगह दी थी। दशाश्मेध घाट मार्ग और बाबा विश्वनाथ के निकट ही स्‍थित है यहां गुरु बृहस्पति मंदिर। इस मंदिर में तभी से सतत गुरु बृहस्पति देव की पूजा आराधना होती आई है। भगवान विष्णु के अंशावतार होने के बाद भी यहां देव बृहस्पति शिव रूप में पूजे जाते हैं और बाबा विश्वनाथ की ही तरह इनका भी जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक व बेल पत्रों से श्रृंगार होता है। इस मंदिर को लेकर हिंदू शास्त्र के अनुसार यहां गुरु बृहस्पति साक्षात मौजूद हैं। संतान की प्राप्ति करने के लिए श्रद्धालु यहां दूर-दूर से आकर गुरु बृहस्पति की पूजा आराधना करते है।

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में देवगुरु बृहस्पति का मंदिर है। जो कि देवगुरु पर्वत की चोटी पर स्थित है । इस मंदिर को देवगुरु बृहस्पति की तपस्थली माना जाता है। कहा जाता है यहां बृहस्पति देव ने तपस्या की थी। इसलिए इस पर्वत को देवगुरु पर्वत कहा जाता है।

राजस्थान की राजधानी जयपुर में भगवान बृहस्पति देव का एक मंदिर है। यह जयपुर के महारानी फार्म में स्थित है। इस मंदिर में शुद्ध सोने की बृहस्पति देव की प्रतिमा स्थापित है।

दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुवरूर जिले से 38 किमी दूर गांव है अलंगुड़ी। यहां श्री आपत्सहायेश्वर महादेव का मंदिर है। लोक मान्यता है कि ये वही स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पीया था। इसी कारण यहां महादेव का नाम आपत्सहायेश्वर है। अर्थ है जो आपत्ति में सहायक हो। इसी मंदिर में भगवान बृहस्पति की प्रतिमा मौजूद है। इन्हें गुरु भगवान बृहस्पति दक्षिणमूर्ति कहा जाता है। आपत्सहायेश्वर महादेव में ही देवगुरु बृहस्पति का भवन भी मौजूद है। यहां लोग कुंडली के ग्रह दोषों की शांति के लिए मंदिर की 24 परिक्रमा करते है, 24 बत्तियों वाला दीपक भी लगाते हैं। इसको लेकर मान्यता है कि इससे कुंडली के गुरु जनित दोष दूर होते हैं, गुरु ग्रह का शुभ फल मिलने लगता है।

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