संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा आयोजित किसान महापंचायत के लिए सोमवार को देश भर से सैकड़ों किसान नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकत्र हुए।
इस सभा में किसानों के अधिकारों पर बहस को पुनर्जीवित किया गया तथा सरकार को याद दिलाया गया कि 2020-21 के कृषि आंदोलन के बाद की गई कई प्रतिबद्धताएं अभी भी अधूरी हैं।
विरोध प्रदर्शन के मूल में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग है। किसानों ने ज़ोर देकर कहा कि एमएसपी सिर्फ़ मुख्य फसलों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें डेयरी, पोल्ट्री और मत्स्य पालन को भी शामिल किया जाना चाहिए।
उनका तर्क था कि केवल एक कानूनी ढाँचा ही किसानों को अस्थिर बाज़ारों और अनियंत्रित निजी मुनाफ़ाखोरी से बचा सकता है। सामली के किसान विनोद निरवाल ने कहा, “पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हज़ारों किसान अपनी आवाज़ उठाने के लिए दिल्ली में इकट्ठा हुए हैं। हमारी माँग सीधी है—सी2+50 फ़ॉर्मूले के आधार पर फसलों का मूल्य तय किया जाए।” उन्होंने कहा, “सरकार ने किसानों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। अगर किसी गरीब को कैंसर हो जाता है, तो वह मर जाता है क्योंकि वह इलाज के लिए 50 लाख रुपये नहीं दे सकता। गाँवों में कोई बचत नहीं बची है, हमारे बच्चे खेती के बजाय शहरों में 12,000 रुपये की मज़दूरी करने को मजबूर हैं।”
Leave feedback about this