July 26, 2025
National

स्मृति शेष: ‘सपने देखने वाला ही उसे साकार भी करता है’, कलाम साहब की सोच, जो देश को दिखा रही राह

In memory: ‘The one who dreams also makes it come true’, Kalam sahab’s thoughts, which are showing the way to the country

तारीख थी 27 जुलाई, साल था 2015… और शाम ढल चुकी थी। भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलॉन्ग का एक सभागार छात्रों से भरा पड़ा था। मंच से एक जाने-माने शख्स सबको संबोधित कर रहे थे, लेकिन तभी अचानक खामोश हो गए। अचानक लड़खड़ा कर गिरे तो उठ नहीं पाए। बाद में खबर आई तो निधन की। ये कोई और नहीं बल्कि मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे, जिन्होंने जीवन भर देश को शक्तिसंपन्न और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा।

कलाम साहब आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, उनकी आवाज आज भी स्कूलों में, किताबों में, मिसाइल प्रक्षेपणों में और हर उस युवा के सपनों में गूंजती है, जो कुछ बड़ा करना चाहता है।

एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम डॉ. अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है। कलाम का जीवन कोई साधारण कहानी नहीं है। यह उस मछुआरे के बेटे की गाथा है, जिसने रामेश्वरम की गलियों से चलकर राष्ट्रपति भवन की दहलीज तक का सफर तय किया और मिसाइल तकनीक से लेकर बच्चों के मन तक में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव रामेश्वरम में हुआ। उनके पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन जीवन की सच्ची शिक्षा कलाम साहब ने उन्हीं से सीखी और वह थी ईमानदारी, परिश्रम और दूसरों की सेवा। कलाम साहब ने अपनी आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ फायर’ में इसका जिक्र भी किया है।

कलाम साहब ने ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर अपने जीवन को राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ में समर्पित कर दिया। डीआरडीओ में होवरक्राफ्ट पर काम करते हुए उन्होंने जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण सीखा, वह आगे चलकर इसरो में एक महान परिवर्तन का कारण बना। वहां उन्होंने भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 विकसित किया, जिससे 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। यह क्षण भारत के अंतरिक्ष इतिहास में मील का पत्थर था।

यहीं से कलाम साहब को ‘मिसाइल मैन’ का नाम मिला, जो उन्हें अमर कर गया। उन्होंने पृथ्वी और अग्नि जैसे स्वदेशी मिसाइल विकसित किए। उन्होंने न सिर्फ भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि सामरिक दृष्टि से आत्मगौरव और आत्मविश्वास से भर दिया। 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों में उनकी भूमिका रणनीतिक और निर्णायक रही। एक वैज्ञानिक के रूप में वे केवल प्रयोगशाला के भीतर सीमित नहीं रहे। वे नीति, सुरक्षा और तकनीकी दृष्टिकोण से देश के भविष्य की नींव रख रहे थे।

प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (टीआईएफएसी) के अध्यक्ष और एक प्रख्यात वैज्ञानिक के रूप में, उन्होंने 500 विशेषज्ञों की मदद से देश का नेतृत्व करते हुए प्रौद्योगिकी विजन 2020 पर पहुंचकर भारत को वर्तमान विकासशील स्थिति से विकसित राष्ट्र में बदलने का रोडमैप प्रस्तुत किया। डॉ. कलाम ने नवंबर 1999 से नवंबर 2001 तक कैबिनेट मंत्री के पद पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया और कई विकास अनुप्रयोगों के लिए नीतियों, रणनीतियों और मिशनों को विकसित करने के लिए जिम्मेदार रहे। डॉ. कलाम कैबिनेट की वैज्ञानिक सलाहकार समिति (एसएसी-सी) के पदेन अध्यक्ष भी थे और उन्होंने इंडिया मिलेनियम मिशन 2020 का नेतृत्व किया।

कलाम साहब की एक और भूमिका भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में रही। 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तब देश को एक ऐसा राष्ट्रपति मिला जो जनता के दिलों में बसता था। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को सत्ता का किला नहीं, जनसंपर्क का केंद्र बना दिया। उनकी सादगी, उनके व्याख्यान और आम लोगों के साथ उनके सहज संवाद ने उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ बना दिया।

2007 में राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी उनका सफर थमा नहीं। वे विश्वविद्यालयों में पढ़ाते रहे, छात्रों से संवाद करते रहे, और युवाओं को प्रेरणा देते रहे। उन्होंने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं, जो आज भी युवाओं की सोच को दिशा देती हैं और कलाम साहब के विचारों को जीवित रखती हैं। डॉ. कलाम के विचारों में भारत का भविष्य बसता था। एक ऐसा भारत जो तकनीकी रूप से उन्नत हो, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो, और नैतिक रूप से मजबूत हो।

अपने साहित्यिक प्रयासों के दौरान, डॉ. कलाम की चार ‘पुस्तकें—’विंग्स ऑफ फायर,’ ‘इंडिया 2020—ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम,’ ‘माई जर्नी’ और ‘इग्नाइटेड माइंड्स – अनलीशिंग द पावर विदिन इंडिया’ भारत और विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो गई। इन पुस्तकों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न (1997) से सम्मानित किया गया। इससे पहले, उन्हें पद्म भूषण (1981) और पद्म विभूषण (1990) भी मिल चुके थे। 30 से अधिक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया। लेकिन, उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार बच्चों के बीच से आती हुई वह मासूम मुस्कान थी, जब वे कहते थे कि मैं भी डॉ. कलाम बनना चाहता हूं।

आज जब हम डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं है – यह एक प्रेरणा है। उनके विचार, उनके मूल्य, और उनका दृष्टिकोण आज के भारत के लिए उतने ही जरूरी हैं जितने 1998 के पोखरण परीक्षणों के समय थे। डॉ. कलाम का जीवन बताता है कि सपने वो नहीं जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते। और आज देश के लाखों युवा उन्हीं सपनों को संजोए आगे बढ़ रहे हैं।

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