सिरसा, 7 जून नाथूसरी चोपता क्षेत्र के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही है। ऐसे ही एक किसान हैं कुम्हारिया गांव के मोहर सिंह न्योल। मोहर सिंह ने तीन साल पहले तीन एकड़ में अनार की खेती शुरू की। जब तक पौधे बड़े नहीं हो गए, उन्होंने अनार के पौधों के बीच तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा की खेती की, जिससे आय का एक अतिरिक्त स्रोत बन गया।
मोहर सिंह कहते हैं कि जब तक अनार के पेड़ फल देने शुरू नहीं कर देते, तब तक वे तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। उनके अनुसार, किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी और फल-सब्जियां उगाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
मोहर सिंह बताते हैं कि नहरी पानी की कमी, प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों के कारण पारंपरिक फसलों की पैदावार कम हो गई है, जिससे बचत भी कम हो गई है। खेती से होने वाली आय बढ़ाने के लिए उन्होंने दूसरे विकल्प तलाशने शुरू किए। उनके बेटे रोहताश ने अखबारों में बागवानी के बारे में पढ़ा और तीन एकड़ में अनार का बाग लगाया।
अब तक अनार के पेड़ों में फल लगने शुरू हो गए हैं, इसलिए मोहर सिंह ने तीन एकड़ में अनार की कतारों के बीच तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा लगाया। इससे उन्हें इस सीजन में करीब 3 लाख रुपए की कमाई हुई है। उन्होंने बताया कि वे अपनी बागवानी में मुख्य रूप से जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। जब तक अनार के पौधे पूरी तरह से बड़े होकर फल देने नहीं लगते, तब तक वे कतारों के बीच सब्जियां उगाते रहते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होती है। इस तरह उन्हें दोगुना फायदा हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि कुम्हारिया, खेरी, गुसाईंया और आसपास के गांवों के लोगों को उनके खेत की सब्जियां बहुत पसंद आती हैं।
खेती के लिए आधुनिक तरीकों का उपयोग करके मोहर सिंह क्षेत्र और राजस्थान के आसपास के गांवों के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं।
नायोल ने बताया कि उन्होंने अपने खेत पर एक डिग्गी (पानी की टंकी) बनाई हुई है और जब ज़रूरत होती है, तो वे ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल करके सीधे जड़ों में पौधों की सिंचाई करते हैं। इससे पानी की बचत होती है और पौधों को ज़रूरत के हिसाब से पानी और पोषक तत्व मिलते रहते हैं।
मोहर सिंह ने बताया कि सिरसा का बाजार उनके गांव से बहुत दूर है, जिससे परिवहन लागत बढ़ जाती है और बचत कम हो जाती है। इसके अलावा, फलों को संरक्षित करने के लिए आस-पास कोई वैक्सिंग प्लांट भी नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर नाथूसरी चोपता में फलों और सब्जियों की मंडी विकसित की जाए और वैक्सिंग प्लांट स्थापित किया जाए, तो परिवहन लागत कम हो जाएगी, जिससे किसानों को अधिक बचत होगी।