January 31, 2025
National

पुण्यतिथि विशेष: मानव सेवा आसान नहीं और मदर टेरेसा ने इसी मार्ग को चुना

Irshad Kamil: The songs written by him make us feel life, his words are a boon for those in love.

नई दिल्ली, 5 सितंबर । ‘प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है’ ऐसा मानती थीं लाखों करोड़ों जरूरतमंदों की मदर टेरेसा। जिन्होंने पूरी जिंदगी हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों के लिए गुजार दी। उनका यह विश्वास था कि सच्ची सेवा तभी संभव है जब हम पूरी लगन और समर्पण के साथ काम करें। ‘सेवा का कार्य एक कठिन कार्य है,’ वाले सिद्धांत पर यकीन रखती थीं और उनकी कार्यशैली में भी यही परिलक्षित होता रहा।

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को उस्कुब, ओटोमन साम्राज्य (वर्तमान में सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ। मदर टेरेसा की पूरी जिंदगी एक मिसाल है, जिसमें उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हार्ट अटैक से हुई, लेकिन उनके द्वारा की गई सेवाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की, जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए काम किया। उनका यह मिशन, जो शुरू में सिर्फ एक छोटी सी संस्था थी, धीरे-धीरे 123 देशों में फैल गया। उनकी सेवाओं में एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं और सूप रसोई, बच्चों और परिवारों के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय शामिल थे। उनके इस मिशन के तहत, लाखों लोगों की जिंदगी संवरी और उनकी सच्ची सेवा का असर पूरी दुनिया में देखा गया।

मदर टेरेसा का जीवन एक समर्पण वाली यात्रा थी। उन्होंने 1970 तक गरीबों और असहायों के लिए टूट कर काम किया। उनके कार्यों के बारे में कई वृत्तचित्र और पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें माल्कोम मुगेरिज के वृत्तचित्र और समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड शामिल हैं। 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न जैसे सम्मान प्राप्त हुए, जो उनकी अद्वितीय सेवाओं की मान्यता थे।

उनकी सेवा की भावना और उनके विचार इस बात का प्रमाण हैं कि मानवता की सेवा में कोई भी काम छोटा नहीं होता।

मदर टेरेसा के काम और उनके सिद्धांतों से प्रेरित होकर दुनिया भर से स्वयं-सेवक भारत आए और गरीबों की सेवा में लग गए। उन्होंने हमेशा कहा कि सेवा का कार्य तब पूरा होता है जब हम भूखों को खिलाएं, बेघर लोगों को शरण दें, और बेबस लोगों को प्यार से सहलाएं।

1962 में ‘पद्म श्री,’ 1977 में ‘आईर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर,’ और 19 दिसंबर 1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों ने उनकी सेवा और मानवता के प्रति समर्पण को मान्यता दी और यह साबित किया कि सच्ची सेवा और प्यार कभी व्यर्थ नहीं जाते।

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