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झारखंड के खरसावां में 76 साल पहले 1 जनवरी को हुआ था जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार

Jallianwala Bagh-like massacre took place in Kharsawan, Jharkhand, 76 years ago on January 1.

रांची, 2  जनवरी। पहली जनवरी पूरी दुनिया के लिए नये साल के जश्न का मौका है, लेकिन झारखंड के खरसावां के लिए यह रक्तरंजित तारीख है। देश की आजादी के बाद 1948 की पहली जनवरी को यहां की धरती अनगिनत आदिवासियों के खून से लाल हो गयी थी। खरसावां और सरायकेला रियासत को तत्कालीन उड़ीसा में मिलाने के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इकट्ठा हुए हजारों आदिवासियों पर तत्कालीन हुकूमत ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। इसकी तुलना पंजाब के जलियांवाला बाग नरसंहार से की जाती है।

हर साल की तरह इस बार भी 1 जनवरी को खरसावां के शहीदों को याद करने के लिए हजारों लोग यहां बने शहीद स्मारक पर इकट्ठा हुए। झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी शहीद स्मारक पहुंचकर श्रद्धांजलि के फूल चढ़ाये।

हैरानी की बात यह है कि खरसावां गोलीकांड के 76 साल गुजर जाने के बाद भी शहीद हुए लोगों की सही संख्या और ब्यौरा आज तक सामने नहीं आ पाया। खरसावां गोलीकांड की जांच के लिए ‘ट्रिब्यूनल’ का गठन भी किया गया था, उसकी रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आयी। शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी कहा है कि सरकार खरसावां के शहीदों के बारे में पता लगाएगी और उनके परिजनों को उचित सम्मान राशि देगी।

1 जनवरी 1948 के इस गोलीकांड की पृष्ठभूमि यह है कि आजादी के बाद रियासतों के देश में विलय और राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया चल रही थी, तब खरसावां और सरायकेला की रियासत को उड़ीसा में शामिल करने का प्रस्ताव का इस इलाके के लोगों ने जोरदार विरोध किया था। वे उड़ीसा के बजाय अलग राज्य की मांग कर रहे थे। इस मांग को लेकर उद्वेलित लोगों की सभा 1 जनवरी 1948 को खरसावां हाट मैदान में बुलायी गयी थी। यह सभा आदिवासियों के कद्दावर नेता मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की अगुवाई में होने वाली थी।

इस सभा में हिस्सा लेने के लिए जमशेदपुर, रांची, सिमडेगा, खूंटी, तमाड़, चाईबासा और दूरदराज के इलाके से आदिवासी आंदोलनकारी अपने पारंपरिक हथियारों से लैस होकर खरसावां पहुंचे थे। किसी वजह से वह सभा में नहीं पहुंच पाये, तब वहां जमा हजारों लोगों ने तय किया कि अपनी मांग को लेकर खरसावां राजमहल जायेंगे और राजा को अपनी भावना से अवगत करायेंगे। उड़ीसा सरकार ने आदिवासियों के प्रदर्शन को देखते हुए बड़ी संख्या में पुलिस की तैनाती कर रखी थी। हजारों की भीड़ जब खरसावां राजमहल की ओर बढ़ने लगी तो पुलिसकर्मियों ने उन्हें रुकने की चेतावनी दी। इसे नजरअंदाज आदिवासी आगे बढ़े तो उनपर पुलिस अंधाधुंध फायरिंग करने लगी।

बताते हैं कि इस गोलीकांड में हजारों की संख्या में लोग मारे गये। इस गोलीकांड के खिलाफ जयपाल सिंह ने 11 जनवरी को अपने भाषण में कहा था, “खरसावां बाजार में लाशें बिछी थीं, घायल तड़प रहे थे, पानी मांग रहे थे लेकिन उड़ीसा प्रशासन ने ना तो बाजार के अंदर किसी को आने दिया और ना ही यहां से किसी को बाहर जाने की इजाजत दी। घायलों तक मदद भी नहीं पहुंचने दी। आजाद हिन्दुस्तान में उड़ीसा ने जलियांवाला बाग कांड कर दिया। शाम ढलते ही लाशों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया। 6 ट्रकों में लाशों को भरकर या तो दफन कर दिया गया या फिर जंगलों में बाघों के खाने के लिए फेंक दिया गया। नदियों की तेज धार में लाशें फेंक दी गई। घायलों के साथ तो और भी बुरा सलूक किया गया, जनवरी की सर्द रात में कराहते लोगों को खुले मैदान में तड़पता छोड़ दिया गया और मांगने पर पानी तक नहीं दिया गया।”

बताते हैं खरसावां के इस ऐतिहासिक मैदान में एक कुआं था। जान बचाने के लिए कई लोग कुएं में कूदे। कुआं लाशों से पट गया। गोलीकांड के बाद जिन लाशों को उनके परिजन लेने नहीं आए, उन लाशों को उसी कुआं में डालकर कुआं का मुंह बंद कर दिया गया। इसी स्थल पर वर्तमान में शहीद स्मारक स्थित है।

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा ने अपनी किताब ‘झारखंड आंदोलन के दस्तावेज़ : शोषण, संघर्ष और शहादत’ में इस गोलीकांड पर एक पूरा चैप्टर लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है कि “मारे गए लोगों की संख्या के बारे में बहुत कम दस्तावेज़ उपलब्ध हैं। पूर्व सांसद और महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमोइर ऑफ ए बायगॉन एरा’ के मुताबिक इस घटना में दो हज़ार लोग मारे गए थे।”

हालांकि, तत्कालीन कलकत्ता से प्रकाशित अंग्रेजी अख़बार द स्टेट्समैन ने तीन जनवरी के अंक में इस घटना से संबंधित जो खबर छापी थी, उसमें 35 आदिवासियों के मारे जाने का जिक्र है। बहरहाल, आज तक साफ नहीं हो पाया है कि इस खरसावां गोलीकांड में कितने लोग मारे गये थे। हैरानी तो यह है कि इसे लेकर पुलिस थाने में कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं है।

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