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जम्मू-कश्मीर चुनाव : सपा की एंट्री से कितना बदलेगा समीकरण

Jammu and Kashmir elections: How much will the equation change with SP's entry?

नई दिल्ली, 16 सितंबर । जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में आखिरी मौके पर समाजवादी पार्टी ने अपनी एंट्री की घोषणा की है। नामांकन दाखिल होने से और नामांकन पत्रों की जांच पूरी होने के बाद पार्टी ने रविवार शाम बताया कि उसने अपने 20 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। यहां विधानसभा की कुल 90 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में 20 सीटें बहुत मायने रखती हैं। सवाल उठता है कि इस बदले समीकरण से किसे फायदा होगा और किसका नुकसान होगा।

यह तो तय है कि समाजवादी पार्टी कहीं से भी भाजपा के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकती है। ऐसे में ‘इंडिया’ ब्लॉक में शामिल अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी की जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतरने को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक इसे ‘इंडिया’ ब्लॉक में दरार बढ़ने का परिणाम बता रहे हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए एक साथ आये विपक्षी दलों के गठबंधन का विधानसभा चुनावों में कोई उद्देश्य ही नहीं बचा है। ऐसे में उनका बिखरना तय है, और यह धरातल पर नजर भी आ रहा है। एक तरफ जम्मू-कश्मीर में समाजवादी पार्टी ने गुपचुप अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिये तो दूसरी तरफ हरियाणा में आप और कांग्रेस के बीच बात नहीं बन पाई।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी सपा की उत्तर प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों में भी अपना आधार बढ़ाने की महत्वाकांक्षा लाजमी है। लेकिन वह किसी भी तरह भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली नहीं है। समाजवादी पार्टी यदि किसी के वोट काट सकती है तो वह ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियों की है।

सपा ने जिन 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, उन पर गौर करें तो इनमें से सिर्फ चार पर उसके उम्मीदवार कांग्रेस के प्रत्याशियों को टक्कर देते दिख रहे हैं। ये सीटें हैं बारामूला, उधमपुर पश्चिम, बांदीपोरा और वगूरा क्रीरी। चारों विधानसभा क्षेत्रों में तीसरे और अंतिम चरण में 1 अक्टूबर को मतदान होने हैं। उधमपुर वेस्ट में तो सपा के अलावा शिवसेना (उद्धव गुट) भी कांग्रेस के खिलाफ मैदान में है।

कांग्रेस के खिलाफ सपा के ज्यादा उम्मीदवार न उतारने को लेकर कुछ राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की अंदरखाने समझौते की आशंका भी जता रहे हैं। उनका कहना है कि इन चार सीटे बारामूला, उधमपुर पश्चिम, बांदीपोरा और वगूरा क्रीरी पर कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, और इसलिए सपा के इन सीटों पर उम्मीदवार उतारने से भी चुनाव नतीजों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं, कांग्रेस और सपा मिलकर शेष सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह मिले-जुले जनादेश की स्थिति में कांग्रेस के बैकअप प्लान का हिस्सा हो सकता है।

हालांकि पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी का केंद्रशासित प्रदेश में कोई खास जनाधार नहीं है। ऐसे में सपा का यहां किसी भी गठबंधन के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर भी कुछ ज्यादा तो नहीं कर सकती है लेकिन कुछ वोटों को अपने पाले में लेकर वह किसी ना किसी का खेल जरूर बिगाड़ सकती है।

वैसे, केंद्रशासित प्रदेश में कुछ सीटों पर एनडीए के घटक दल भी आमने-सामने हैं। मसलन, वगूरा क्रीरी से जदयू और एनसीपी (अजीत पवार) दोनों ने अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं। लेकिन कहीं भी भाजपा के खिलाफ ऐसी स्थिति नहीं बनी है।

कारण चाहे जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि समाजवादी पार्टी के जम्मू-कश्मीर चुनाव में कूदने से समीकरण दिलचस्प हो गया है। वह वास्तव में कितना उलटफेर कर पाती है, यह 8 अक्टूबर को ही पता चलेगा जब चुनाव के नतीजे आएंगे।

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