N1Live National बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना जदयू की नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी : राजद
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बिहार आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना जदयू की नैतिक व वैधानिक जिम्मेदारी : राजद

JDU's moral and legal responsibility to include Bihar reservation in the Ninth Schedule: RJD

पटना, 30 जुलाई। बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मंगलवार को कहा कि प्रदेश में जाति आधारित जनगणना के बाद आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई है। अब इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करवाना जदयू की नैतिक और वैधानिक जम्मेदारी है।

राजद प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता में राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन एवं मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करना जदयू की जिम्मेदारी है। 1951 में संविधान में किए गये पहले संशोधन में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया था। इसमें शामिल कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है।

राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मंडल आयोग की अनुशंसा लागू होने के बाद से ही राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव देश में जाति जनगणना कराने और उसके अनुसार आरक्षण की सीमा का निर्धारण करने की मांग करते रहे हैं, जिसका उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उनके लिए विशेष अवसर का प्रावधान करना रहा है। लालू यादव के नेतृत्व में राजद इन सवालों को सदन और सड़क पर उठाती रही है। बाद के दिनों में तेजस्वी यादव ने इस अभियान को जारी रखा।

उन्होंने कहा कि अगस्त 2022 में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद प्राथमिकता देते हुए बिहार में जातीय गणना कराई गई। जातीय गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर महागठबंधन सरकार द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, इबीसी और ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाया गया। महागठबंधन सरकार के समय हुई शिक्षकों सहित अन्य नियुक्तियों में बढ़ाए गए आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अति पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग एवं ईबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को मिला। शिक्षण संस्थानों में भी इसका लाभ उक्त वर्गों को प्राप्त हुआ।

उन्होंने कहा कि भाजपा के अपरोक्ष समर्थन और सहयोग से बढ़ाये गये आरक्षण के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई। उच्च न्यायालय द्वारा बढ़ाए गए आरक्षण पर रोक लगा दी गई। राज्य सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश पर स्थगन देने से इनकार कर दिया गया है। स्थिति यह है कि लगभग एक लाख शिक्षकों के साथ ही स्वास्थ्य, राजस्व एवं अन्य विभागों में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शिक्षण संस्थानों में भी नामांकन की प्रक्रिया चल रही है। इस स्थिति में इसका लाभ अब अभ्यर्थियों को नहीं मिल पाएगा।

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