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कपूरथला के विधायक राणा गुरजीत ने पंजाब के बासमती उत्पादकों के लिए समर्थन मांगा

कपूरथला से पंजाब विधानसभा के सदस्य राणा गुरजीत सिंह ने आज भारत सरकार और पंजाब सरकार से राज्य के बासमती उत्पादकों के लिए सहायता की मांग की, क्योंकि उनके अनुसार चालू सीजन में राज्य में बेची जा रही बासमती की कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में 40% की गिरावट आई है।

राणा गुरजीत सिंह के अनुसार पंजाब सरकार किसानों को फसल की खेती में विविधता लाने तथा अधिक पानी की खपत करने वाली परमल किस्म की धान की खेती से दूर रहने के लिए प्रेरित कर रही है, तथा जब वे इसकी खेती करते हैं तो उन्हें उनकी कड़ी मेहनत तथा लागत के अनुरूप मूल्य नहीं दिया जाता है। 

गुरजीत सिंह ने कहा, “पंजाब सरकार ने किसानों से वादा किया है कि वह धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों को समर्थन देने के लिए एक कोष बनाएगी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अंतर्गत आती हैं, इसलिए जब किसान जोखिम उठा रहे हैं तो सरकार को उनका समर्थन करना चाहिए।” उन्होंने सुझाव दिया कि भारत सरकार की एक इकाई कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) को बासमती उत्पादकों की सुविधा के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। 

यह सरकार के लिए लाभकारी है, क्योंकि बासमती के निर्यात से प्रतिवर्ष 48,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है तथा इससे भूजल के अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करके पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलती है, जो बहुत तेजी से गिर रहा है। 

विधायक के अनुसार किसानों के प्रयासों से प्रीमियम बासमती की खेती का रकबा 84,000 हेक्टेयर बढ़कर 6.80 लाख हेक्टेयर हो गया है। विधायक ने कहा, “ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध के कारण लॉजिस्टिक लागत भी बढ़ गई है और मध्य-पूर्वी देशों से ऑर्डर बहुत कम हो गए हैं।” 

अकेले ईरान 4 लाख टन आयात करता था और इस साल अब तक उन्होंने एक लाख टन प्रीमियम अनाज का ऑर्डर दिया है जिससे कीमतों में गिरावट आई है। राणा गुरजीत सिंह कहते हैं, “किसानों की क्या गलती है, मौजूदा हालात में उन्हें अपनी उपज संकट में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, इसलिए सरकार का कर्तव्य है कि वह उनकी मदद करे।” उन्होंने कहा कि बासमती 3300 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है जो पिछले साल की तुलना में 2000 रुपये प्रति क्विंटल कम है। 

उन्होंने आशंका जताई कि यदि बासमती उत्पादकों को अगले वर्ष मदद नहीं मिली तो किसान अधिक पानी की खपत करने वाली परमल किस्म की धान की खेती की ओर रुख कर लेंगे, जैसा कि दक्षिण-पश्चिम पंजाब में कपास के मामले में हुआ है, जिसके कारण इस वर्ष धान का रकबा 32 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है।

परमल धान की कुछ किस्मों को बेचने में किसानों को हो रही परेशानियों पर चिंता जताते हुए विधायक ने कहा कि यह सुनिश्चित करना वनस्पति वैज्ञानिकों का कर्तव्य है कि खरीद मानदंडों को पूरा करने के बाद ही किस्मों को जारी किया जाए। उन्होंने पूछा कि अगर धान 66-67% के मानदंडों के विपरीत 62% चावल दे रहा है, तो इसमें किसान या मिल मालिकों का क्या दोष है।

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