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केरल में सरकारी अस्पताल के फर्श पर मरीज का इलाज, मंत्री ने किया बचाव

Kerala government hospital patient treated on floor, minister defends

केरल के तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज में मरीजों का इलाज बेड पर नहीं फर्श पर किया जा रहा है। इसे लेकर हल्ला मचा तो स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने इसे गलत नहीं माना बल्कि तर्क देकर बचाव किया।

मंत्री ने इसका ठीकरा भी मरीजों की बढ़ती संख्या पर फोड़ा। उन्होंने तस्वीर का दूसरा रुख दिखाया और तर्क दिया कि बीमारों की संख्या ज्यादा थी। जॉर्ज ने बचाव में कहा कि अच्छी बात ये रही कि किसी को बिना इलाज के लौटाया नहीं गया; जो भी आया उसको देखा जरूर गया।

उनके मुताबिक, केरल के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में मरीजों की संख्या उम्मीद से ज्यादा है। उन्होंने आगे कहा, “हम बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। एक मरीज को भी बैरंग नहीं लौटाया जा रहा। कुछ तीमारदार मरीजों को छोड़कर चले जाते हैं, तो उनकी व्यवस्था भी हम कर रहे हैं।”

वीना जॉर्ज ने रेफरल प्रोटोकॉल के सख्त पालन की आवश्यकता पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, “सभी को मेडिकल कॉलेजों में नहीं भेजा जाना चाहिए। बेड उपलब्धता सुनिश्चित होने के बाद ही मरीजों को रेफर किया जाना चाहिए।”

मंत्री ने निजी अस्पतालों को भी इस पूरी स्थिति के लिए जिम्मेदार माना। उन्होंने कहा, “निजी अस्पताल अक्सर मरीजों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भेज देते हैं, जिससे संसाधनों पर और दबाव पड़ता है।”

हाल ही में वरिष्ठ चिकित्सक हारिस चिरक्कल ने प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को ‘आदिम’ बताते हुए सख्त आलोचना की थी। उन्होंने मरीजों के फर्श पर किए जा रहे इलाज को भी गलत बताया था।

जब मंत्री से चिरक्कल की तीखी टिप्पणियों पर जवाब मांगा गया तो उन्होंने इनकार करते हुए कहा, “सीधे उनसे पूछिए।”

दरअसल, डॉ. चिरक्कल ने हृदय रोगी वेणु की मृत्यु के बाद अपने विचार रखे थे। उन्हें अस्पताल के फर्श पर लिटा दिया गया था और कथित तौर पर उनका समय पर इलाज नहीं किया गया था।

डॉ. चिरक्कल ने सवाल पूछा था, “किसी का इलाज जमीन पर कैसे किया जा सकता है? अगर देखभाल का यही मानक है, तो राज्य भर में मेडिकल कॉलेज शुरू करने का क्या मतलब है?”

उन्होंने कहा कि इस स्थिति ने कई मरीजों को निजी अस्पतालों पर निर्भर रहने पर मजबूर कर दिया है और कहा कि हालात 1986 से बेहतर नहीं हैं।

डॉ. चिरक्कल ने व्यवस्थागत खामियों पर प्रकाश डाला था, जिसमें “सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए” डॉक्टरों का बार-बार तबादला करने की बात भी थी।

वह यूरोलॉजी विभाग में उपकरणों की कमी का मुद्दा भी उठा चुके हैं।

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