खडूर साहिब से लोकसभा सदस्य अमृतपाल सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत 17 अप्रैल को उनके खिलाफ जारी किए गए लगातार तीसरे निरोध आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें पूर्वाग्रही गतिविधियों से जोड़ने वाली कोई विश्वसनीय सामग्री मौजूद नहीं है।
वकील अर्शदीप सिंह चीमा, ईमान सिंह खारा और हरजोत सिंह मान के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया है कि यह नज़रबंदी “मनमाना, अधिकार क्षेत्र से बाहर और अनुच्छेद 21 व 22 के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन है”। याचिका में कहा गया है कि अमृतपाल सिंह अप्रैल 2023 से निवारक नज़रबंदी में हैं, जबकि उन्हें लगातार नज़रबंदी बनाए रखने के लिए कोई सबूत नहीं मिला है।
मामले की सुनवाई अभी बाकी है। याचिका की एक अग्रिम प्रति भारत संघ, अन्य प्रतिवादियों और भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल सत्य पाल जैन सहित वकीलों को भेज दी गई है।
याचिका में कहा गया है कि नवीनतम नज़रबंदी आदेश पूरी तरह से 10 अक्टूबर, 2024 को दर्ज एक प्राथमिकी पर आधारित है। उनका तर्क है कि उनका नाम प्राथमिकी में नहीं था और उनका नामांकन बाद में 18 अक्टूबर, 2024 की एक डीडीआर के माध्यम से दर्ज किया गया था। यह सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दायर अंतिम रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि प्राथमिकी में कथित घटना से उनके खिलाफ “एक रत्ती भी सबूत नहीं मिला”। याचिका में दावा किया गया है कि इसके बावजूद, उन्हें डिब्रूगढ़ की केंद्रीय जेल में बंद रखा जा रहा है।
याचिका में इस आरोप को खारिज किया गया है कि अमृतपाल सिंह राष्ट्र-विरोधी तत्वों से जुड़े थे या किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से खत्म करने की किसी साजिश का हिस्सा थे। याचिका में दावा किया गया है कि ऐसे आरोपों का कोई भी सबूत मौजूद नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि अमृतपाल सिंह अपनी गिरफ़्तारी से पहले सामाजिक सुधार कार्यक्रमों में शामिल थे, जिनमें युवा नशामुक्ति कार्यक्रम, नशीली दवाओं के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ अभियान और अपने संगठन वारिस पंजाब दे के ज़रिए समुदाय-केंद्रित हस्तक्षेप शामिल थे। याचिका में कहा गया है कि उनके भाषण अलगाववाद या हिंसा के बजाय सिख मूल्यों, सांस्कृतिक पहचान और संवैधानिक सुरक्षा पर केंद्रित थे।

