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झारखंड में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति और नई नियमावली पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर

Kiran Chaudhary said in Rajya Sabha, 'The condition of Delhi is like a dirty slum

झारखंड में डीजीपी की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई है। अखिल भारतीय आदिम जनजाति विकास समिति, झारखंड की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ मामले में दिए गए निर्देशों की अवहेलना की है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के विपरीत न सिर्फ कार्यवाहक डीजीपी का पद सृजित कर लिया है, बल्कि कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर ‘जनहित’ के नाम पर डीजीपी को कभी भी हटाने और इस पद पर नियुक्ति की अनुशंसा के लिए चयन समिति गठित करने का निर्णय लिया है।

याचिका में कहा गया है कि ये सभी कदम शीर्ष अदालत के निर्देशों के खिलाफ हैं, जिससे पुलिस सुधार की प्रक्रिया बाधित हो रही है। याचिका में यह भी कहा गया है कि झारखंड सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के 22 सितंबर 2006, 3 जुलाई 2018 और 13 मार्च 2019 के आदेशों का उल्लंघन किया है।

याचिका में बताया गया है कि वरिष्ठ आईपीएस अजय कुमार सिंह को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार डीजीपी नियुक्त किया गया था, लेकिन झारखंड सरकार ने उन्हें दो साल के कार्यकाल से पहले ही हटा दिया और उनकी जगह अनुराग गुप्ता को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया। बाद में, विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद, भारत के निर्वाचन आयोग ने अनुराग गुप्ता को उनके पद से हटा दिया, क्योंकि पूर्व में उन पर चुनावी अनियमितताओं में संलिप्तता के आरोप लगे थे।

इसके बाद, चुनाव आयोग के निर्देश पर अजय कुमार सिंह को डीजीपी नियुक्त किया गया, जिनके कार्यकाल में चुनाव संपन्न हुए। लेकिन, चुनाव खत्म होते ही, राज्य सरकार ने अजय कुमार सिंह को हटाकर अनुराग गुप्ता को फिर से कार्यवाहक डीजीपी बना दिया।

याचिकाकर्ता का कहना है कि अनुराग गुप्ता की नियुक्ति अदालत के आदेशों का खुला उल्लंघन है। ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि डीजीपी का चयन केवल यूपीएससी द्वारा तैयार की गई तीन वरिष्ठतम अधिकारियों की सूची से किया जाना चाहिए और उनका कार्यकाल न्यूनतम दो साल का होना चाहिए।

याचिका में यह भी कहा गया है कि झारखंड सरकार ने 7 जनवरी 2025 को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में डीजीपी के चयन और नियुक्ति के लिए जिस नियमावली को मंजूरी दी, वह सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नए नियमों में यूपीएससी की भूमिका समाप्त कर दी गई है और चयन प्रक्रिया को राज्य सरकार के नियंत्रण में कर दिया गया है। इससे नियुक्ति की पारदर्शिता और मेरिट-आधारित प्रक्रिया खत्म हो गई है।

याचिका में कहा गया कि इस नई प्रक्रिया से स्वतंत्र और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया को खतरा है और यह राजनीतिक हस्तक्षेप को बढ़ावा देने वाला कदम है। साथ ही, नए नियमों में डीजीपी का न्यूनतम दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित करने का प्रावधान भी नहीं किया गया है, जिससे स्थिरता और स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।

याचिकाकर्ता ने झारखंड सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने और डीजीपी चयन और नियुक्ति नियम, 2024 को रद्द करने की मांग की है।

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