N1Live Haryana किरण चौधरी के जाने से हरियाणा कांग्रेस पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पकड़ मजबूत हो सकती है
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किरण चौधरी के जाने से हरियाणा कांग्रेस पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पकड़ मजबूत हो सकती है

Kiran Chaudhary's departure may strengthen Bhupendra Singh Hooda's hold on Haryana Congress.

रोहतक, 20 जून कांग्रेस की तोशाम विधायक किरण चौधरी के अपनी बेटी और पूर्व सांसद श्रुति के साथ भाजपा में शामिल होने से पार्टी के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे को फायदा पहुंचने की संभावना है।

किरण ‘एसआरके’ समूह का हिस्सा रही हैं, जिसमें हुड्डा के आलोचक – लोकसभा सांसद निर्वाचित शैलजा कुमारी और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला शामिल हैं।

किरण के पार्टी छोड़ने से ‘एसआरके’ गुट ने एक सदस्य खो दिया है, जबकि हुड्डा गुट को सोनीपत-झज्जर-रोहतक-भिवानी-हिसार क्षेत्र में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए टिकटों के आवंटन में खुली छूट मिलने की पूरी संभावना है।

हाल के लोकसभा चुनावों में भी उम्मीदवारों के चयन में हुड्डा की इच्छा ही प्रबल हुई थी, तथा लोकसभा के लिए चुने गए पांच उम्मीदवारों में से शैलजा को छोड़कर चार उम्मीदवार उनके गुट के हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार किरण और श्रुति का कांग्रेस से अलग होने का फैसला अचानक नहीं लिया गया है। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रणबीर कादियान कहते हैं, “2022 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के एक विधायक का वोट अवैध घोषित कर दिया गया था, जिसके कारण कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन की हार हुई थी। माकन ने किरण पर अवैध वोट डालने का आरोप लगाया था।”

कांग्रेस में गुटबाजी तब सामने आई थी जब पार्टी ने श्रुति की जगह हुड्डा खेमे के राव दान सिंह को मैदान में उतारा था। यह दरार तब खुलकर सामने आई जब मतदान से कुछ दिन पहले एक रैली के दौरान किरण और राव दान सिंह ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सामने एक-दूसरे पर उंगली उठाई थी।

कादियान कहते हैं, “शायद उन्हें यह एहसास हो गया है कि तोशाम विधानसभा क्षेत्र से उन्हें टिकट नहीं मिलेगा।” उन्होंने कहा कि भाजपा में शामिल होने का उनका फैसला शायद फलदायी न हो, क्योंकि कांग्रेस के जो नेता बहुत पहले भगवा पार्टी में शामिल हो गए थे, वे अभी भी वहां पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रोहतक में एमडीयू के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा भी उनके विचारों से सहमत हैं। प्रोफेसर शर्मा कहते हैं, “कांग्रेस में राजनीतिक सफलता की उम्मीद खो चुके नेताओं के बीच भाजपा में शामिल होना एक चलन बन गया है। इनमें विभिन्न राज्यों के प्रमुख नेताओं के उत्तराधिकारी भी शामिल हैं। हालांकि, भाजपा का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि ऐसे लोगों को वहां ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती।”

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