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छठ पूजा में सुथनी, दउरा और पांच ईख का जानें महत्व, छठी मैया और सूर्य देव होंगे प्रसन्न

Know the importance of Suthni, Daura and five reeds in Chhath Puja, Chhathi Maiya and Sun God will be happy.

नई दिल्ली, 3 नवंबर महापर्व छठ के नजदीक आते ही झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी इसकी अनुभूति होने लगी है। छठ एक ऐसा महापर्व है, जिसमें उगते सूर्य के साथ-साथ डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है। व्रतियों के परिवारों के अलावा बाजार में भी इसकी चहल-पहल दिखने लगी है।

भगवान भुवन भास्कर और छठी मैया की उपासना का यह पारंपरिक पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। दिवाली के बाद से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक छठ महापर्व की पूजन सामग्री में कई तरह की चीजें शामिल होती हैं। जैसे- दउरा, सुथनी, पांच ईख।

छठ पूजा में सुथनी का अपना महत्व है। पवित्र फल सुथनी छठी मैया को अर्पित किया जाता है। यह एक कंद है, जिसका स्वाद शकरकंद जैसा ही होता है। ऐसा माना जाता है कि यह फल बहुत पवित्र और शुद्ध होता है और शकरकंद तथा आलू की तरह ही इसको इसकी जड़ों से निकाला जाता है। इसी कारण इसे छठी मैया को चढ़ाया जाता है। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर भी माना जाता है।

गन्ना छठी मैया को अर्पित किया जाता है। वहीं गन्ना को प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। छठ पूजा को बिना गन्ना के अधूरा माना जाता है। छठी मैया की उपासना करने वाली महिलाएं गन्ना को बांधकर घाट या नदी में सूर्य की उपासना करती हैं। वहीं पूजा के डाला और सूप में भी गन्ने के टुकड़े को रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे परिवार और रिश्तों में मिठास बनी रहती है। मान्यता यह भी है कि छठी मैया का प्रिय फल गन्ना है। उन्हें गन्ना चढ़ाने से समृद्धि प्राप्त होती है।

छठ पर्व में दउरा को छठी मैया की पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है। दउरा को भी छठी मैया का प्रसाद माना जाता है। बांस के बने दउरा और सूप का प्रयोग इसलिए होता है, क्योंकि इस पर्व को करने से वंश की प्राप्ति होती है। इसी कारण इस पर्व में बांस के बने दउरा का प्रयोग होता है। दउरा को छठ पूजा के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है और फलों से सजाया जा रहा है। जिस दउरा में छठी मैया का प्रसाद रखा जाता है, उसे स्वच्छ वस्त्र से ढककर घाट पर ले जाया जाता है और इसकी पवित्रता का काफी ख्याल रखा जाता है।

चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा का अपना विधि-विधान है। नहाय-खाय से शुरू हुआ यह महापर्व उषा अर्घ्य के साथ खत्म होता है। छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत की जाती है। स्नान-ध्यान से शुरू हुआ यह व्रत के पहले शुद्धिकरण का प्रतीक है। इस दिन घरों की अच्छी तरह से सफाई की जाती है। इसके बाद बिना लहसुन और प्याज के खाना पकाया जाता है। नहाय खाय वाले दिन व्रती महिलाओं के लिए घीया और चने की दाल से बना भोजन खाने का विधान है।

खरना यानी दूसरे दिन व्रत के दौरान फलाहार और प्रसाद का वितरण किया जाता है। खरना के दिन माताएं दिन भर उपवास रखती हैं। इस दिन धरती माता की पूजा करने के व्रत को शाम में तोड़ा जाता है। भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में चावल की खीर और फल शामिल होते हैं, जिन्हें परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों में बांटा जाता है।

छठ का तीसरा दिन शाम के अर्घ्य के लिए प्रसाद तैयार करने में जाता है, जिसे सांझिया अर्घ्य भी कहा जाता है। तीसरे दिन षष्ठी तिथि के मौके पर सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने का विधान है। शाम को बड़ी संख्या में श्रद्धालु नदियों के किनारे एकत्रित होते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठ के चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जिसके बाद भक्त अपना उपवास तोड़ते हैं और सभी लोगों को महाप्रसाद बांटते हैं।

छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू त्योहार है, जो सूर्य देव और छठी मैया (माता षष्ठी) को समर्पित है, जिन्हें सूर्य की बहन माना जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में तथा इन क्षेत्रों के प्रवासी लोगों द्वारा मनाया जाता है। छठ पूजा चार दिन तक चलती है और यह सबसे महत्वपूर्ण तथा कठोर त्योहारों में से एक है।

छठ पूजा के दौरान सूर्य को जीवन के स्रोत के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य की ऊर्जा बीमारियों को ठीक करने, समृद्धि सुनिश्चित करने और कल्याण प्रदान करने में मदद करती है। भक्त स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशी के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए सूर्य और छठी मैया की पूजा करते हैं।

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