महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम लिए बगैर उन पर ‘गद्दार’ वाला मजाक कर बुरे फंसे स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) सोमवार को हैबिटेट क्लब पहुंचा। निगम क्लब के अवैध हिस्से को ध्वस्त कर सकता है।
हैबिटेट क्लब में ही कुणाल कामरा ने प्रस्तुति दी थी, जो खार पुलिस थाना के अंतर्गत आता है। सोमवार को स्टुडिओ के अंदर बीएमसी के अधिकारी दाखिल हुए। अवैध हिस्से पर कार्रवाई हो सकती है। मनपा के सह आयुक्त विनायक विसपुते भी मौके पर मौजूद रहे।
इस बीच, बढ़ते विवाद को लेकर ‘द हैबिटेट क्लब’ ने सोशल मीडिया पर अपना बयान जारी किया और क्लब अस्थायी रूप से बंद करने की जानकारी दी है। रविवार को शिवसेना कार्यकर्ताओं के तोड़फोड़ की घटना के बाद हैबिटेट की प्रतिक्रिया सामने आई।
क्लब ने तोड़फोड़ को लेकर बयान में कहा, “हम हाल ही में हुई घटनाओं को लेकर स्तब्ध और चिंतित हैं। कलाकार अपने विचारों और रचनात्मकता के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। हमारा इससे कोई भी संबंध नहीं है। हम कभी भी किसी कलाकार के कंटेंट में शामिल नहीं रहे हैं, लेकिन हाल की घटनाओं ने हमें इस बारे में फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है कि हमें हर बार दोषी बनाकर निशाना बनाया जाता है, जैसे कि हमने ही कंटेंट तैयार किया हो।“
क्लब ने बताया, “हमने फैसला लिया है कि हम तब तक काम बंद रखेंगे, जब तक कि हम निश्चिंत नहीं हो जाएं कि अब हमें या हमारी संपत्ति को कोई खतरा नहीं है। हम अपनी संपत्ति को खतरे में डाले बिना स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए एक मंच जब तक नहीं खोज लेते, तब तक वापसी नहीं करेंगे। हम सभी कलाकारों और दर्शकों को स्वतंत्र रूप से चर्चा करने और अपने विचार साझा करने के लिए आमंत्रित करते हैं और आपके मार्गदर्शन का अनुरोध करते हैं, ताकि हम कलाकारों के अधिकारों का भी सम्मान कर सकें। हैबिटेट हमेशा से कलाकारों के लिए किसी भी भाषा में अपना काम सामने लाने के लिए एक शानदार मंच रहा है।”
उन्होंने बयान में आगे बताया, “केवल एक मंच प्रदान करने से लोगों को अपनी रचनात्मकता को खोजने, अपनी प्रतिभा को विकसित करने और नया करियर खोजने में मदद मिलती है। मंच तब तक कलाकार का होता है, जब तक वह उस पर होता है। कलाकार अपने कंटेंट खुद बनाते हैं, उनके शब्द, भाव सब कुछ उनके अपने होते हैं। हम किसी भी तरह की नफरत या नुकसान का समर्थन नहीं करते हैं। हिंसा और विनाश कला और संवाद की मूल भावना को कमजोर करते हैं।“
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