कैथल क्षेत्र न केवल कांग्रेस के लिए बल्कि राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के लिए भी एक महत्वपूर्ण युद्धक्षेत्र बन गया है, जो अपने बेटे आदित्य सुरजेवाला के माध्यम से अपने परिवार की विरासत को सुरक्षित करना चाहते हैं।
इस मुकाबले के नतीजे को रणदीप और उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। रणदीप का परिवार लगातार तीन बार इस सीट पर काबिज रहा है: उनके पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला ने 2005 में तथा रणदीप ने 2009 और 2014 में यह सीट जीती थी।
हालांकि, 2019 के चुनाव में रणदीप लीला राम से सिर्फ 1,246 वोटों से हार गए थे। इस बार आदित्य राम के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कांग्रेस के सबसे युवा उम्मीदवार 25 वर्षीय आदित्य हार जाते हैं, तो इससे हरियाणा की राजनीति में रणदीप की स्थिति पर गहरा असर पड़ सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. कुशल पाल कहते हैं, “इस सीट पर जीत से न केवल उनकी राजनीतिक विरासत सुरक्षित रहेगी, बल्कि क्षेत्र में उनके योगदान को भी मान्यता मिलेगी।”
रणदीप कैथल में मतदाताओं को लुभाने के लिए आक्रामक तरीके से प्रचार कर रहे हैं और उन्हें अपने कार्यकाल और अपने पिता के कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों की याद दिला रहे हैं। हाल के महीनों में, भाजपा और अन्य दलों के कई नेता उनके नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हुए हैं, जिससे उनकी छवि और अभियान को बढ़ावा मिला है।
‘युवा हुंकार, बदलेंगे सरकार’ सम्मेलन के दौरान रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “भाजपा युवाओं को रोजगार देने में विफल रही है, जिसके कारण उन्हें अपनी जमीन बेचकर विदेश जाना पड़ रहा है। कई लोग धोखेबाज एजेंटों के जाल में फंसकर विदेश में मौत के शिकार हो गए हैं। फिर भी केंद्र की मोदी सरकार और नायब सैनी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार दोनों ने आंखें मूंद ली हैं और युवाओं की पीड़ा के प्रति उदासीन बनी हुई हैं।”