नई दिल्ली, 29 सितंबर । किसी शख्स की पहचान करना हो या फिर संवाद करना या सामाजिक एकीकरण तथा शिक्षा और विकास की बात हो। इन सबके लिए जरूरत होती है भाषा की। भले ही लैंग्वेज अलग हो, मगर संवाद होना भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि आज के इस दौर में लोगों के लिए भाषाएं जितनी महत्वपूर्ण होती हैं। उतना ही महत्वपूर्ण होता है उसका अनुवाद भी।
30 सितंबर ये तारीख भी भाषा और अनुवाद के लिए काफी इंपोर्टेंट है। दरअसल, दुनिया भर में हर साल 30 सितंबर को इंटरनेशनल ट्रांसलेशन डे यानी अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया जाता है। इस दिन को चुनने की एक वजह हैं सेंट जेरोम, जिनकी पुण्यतिथी भी इसी दिन होती है। सेंट जेरोम को ही बाइबल का अनुवाद करने का श्रेय दिया जाता है।
साल 1953 में एफआईटी (इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ट्रांसलेटर्स) द्वारा ट्रांसलेटर कम्युनिटी को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस को मनाने की शुरुआत की गई। हालांकि, साल 1991 में एफआईटी ने आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस का बढ़ावा देना शुरू किया, ताकि दुनिया भर में ट्रांसलेटर कम्युनिटी की एकता को बढ़ावा मिल सके।
इस संबंध में 24 मई, 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 30 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में घोषित किए जाने को लेकर एक प्रस्ताव भी पारित किया था। उन्होंने बाइबिल के अनुवादक सेंट जेरोम के पर्व के कारण ही 30 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में चुना।
भारत की बात करें तो यहां विभिन्न धर्म, जाति और वर्ग के लोगों का मिश्रण है, जो कई भाषाओं में संवाद करते हैं। भारतीय संविधान में सिर्फ 22 भाषाएं मान्यता प्राप्त हैं, लेकिन एक आंकड़े के अनुसार, देश में लगभग 121 भाषाएं बोली और समझी जाती हैं। हालांकि, 21वीं सदी में कई ऐसे माध्यम मौजूद हैं, जिसके जरिए भाषाओं को आसानी से ट्रांसलेंट किया जा सकता है।