उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि छात्रों को विफलता के दबाव से मुक्त होकर अपने जीवन को एक नदी की तरह बहने देना चाहिए क्योंकि विफलता नाम की कोई चीज नहीं होती।
उपराष्ट्रपति ने हरियाणा में जन नायक चौधरी देवीलाल विद्यापीठ के वार्षिक दीक्षांत समारोह में कहा, “अब योग्यता का बोलबाला है। जब ऐसा परिदृश्य है, तो आपको कुछ बड़ा सोचना चाहिए। कभी दबाव में न रहें, कभी तनाव में न रहें। विफलता का डर जीवन का सबसे बुरा डर है, क्योंकि यह एक मिथक है। विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती, यह एक ऐसा प्रयास है जो सफल नहीं हुआ।”
उन्होंने कहा कि कुछ लोग इतने निराशावादी थे कि उन्होंने चंद्रयान-2 तक को विफल करार दे दिया। मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था। मैं साइंस सिटी में था, आपकी आयु के लड़के-लड़कियां मेरे साथ थे। उस समय रात के करीब दो बजे थे। मुझे सितंबर 2019 की बात याद है। चंद्रयान-2 चांद की सतह के बहुत करीब पहुंचा, लेकिन उसे छू नहीं पाया। मेरे मुताबिक, यह 90 प्रतिशत से ज्यादा सफल था। इसीलिए, चंद्रयान-3 सफल हुआ और इसीलिए विफलता एक मिथक है। विफलता आपको और बेहतर करने का अवसर देती है। इतिहास में कई महान उपलब्धियां पहले प्रयास में कभी सफल नहीं हुईं।
उपराष्ट्रपति ने छात्रों को गुरुमंत्र देते हुए कहा, “अपने जीवन को माता-पिता द्वारा बनाई गई नहर की तरह नहीं, बल्कि एक नदी की तरह बहने दो।”
जगदीप धनखड़ ने कहा कि हमें सदैव राष्ट्र को सर्वोपरि रखना चाहिए। कोई भी हित राष्ट्रहित से बड़ा नहीं हो सकता। राष्ट्रहित के सामने व्यक्तिगत हित और राजनीतिक हित का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा, “चौधरी देवीलाल जैसे बहुत कम लोग हुए हैं। उन्होंने देश की सेवा की है और अपना मिशन पूरा किया। अब समय आ गया है कि हम भी वैसा ही करने का संकल्प लें, हम राष्ट्र की सेवा करेंगे। हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक दशक पहले अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत नाजुक थी। जब उन्हें चौधरी देवीलाल के आशीर्वाद से सांसद बनने का अवसर मिला तथा उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से वह मंत्री बने। तब कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश का सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा। हमारी साख बनाए रखने के लिए इसे स्विट्जरलैंड के दो बैंकों में रखा गया। आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर से अधिक है। आप खुशकिस्मत हैं कि ऐसे समय में रह रहे हैं, जब भारत उम्मीदों और संभावनाओं से भरा है। यहां सकारात्मक सरकारी नीतियों, सहायक नीतियों वाला इकोसिस्टम मौजूद है, जो आपको अपनी प्रतिभा और क्षमता का दोहन करने, अपनी महत्वाकांक्षाओं और आकांक्षाओं को साकार करने का पूरा अवसर देता है।
उन्होंने बताया कि सदी की सबसे बड़ी महामारी कोविड के बावजूद, 30 महीने से भी कम समय में संसद की नई इमारत बनकर तैयार हो गई, पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो गया। इतना ही नहीं, हमारी पांच हजार साल की सभ्यता का प्रतिबिंब भी संसद में मौजूद है। पिछले दशक में दुनिया के किसी भी देश ने भारत जितनी त्वरित रफ्तार से विकास नहीं किया है। इससे एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, लोगों ने विकास का स्वाद चखा है, उन्होंने विकास देखा है।