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चार दशक पहले झारखंड आईं इंग्लैंड की लिंडसे ने बदल डाली हजारों महिलाओं की जिंदगी

Lindsay of England came to Jharkhand four decades ago, changed the lives of thousands of women.

रांची,  40 साल पहले एक एकेडमिक रिसर्च के सिलसिले में झारखंड आईं इंग्लैंड की लिंडसे बार्न्‍स को जब यहां की महिलाओं से संवाद का मौका मिला तो उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया। ग्रामीण प्रसूता महिलाओं के स्वास्थ्य की बदतर हालत देख पहले वह चिंता में डूबीं और इसके बाद उनके हालात बदलने का संकल्प लेकर वह हमेशा के लिए यहीं की होकर रह गयीं। चार दशकों से वह गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव, जच्चा-बच्चा के पोषण के साथ-साथ ग्रामीण महिलाओं के स्वावलंबन के लिए अनूठी मुहिम चला रही हैं।

उनकी कोशिशों की बदौलत झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत चंदनकियारी प्रखंड की हजारों महिलाओं ने स्वावलंबन और जागरूकता की राह पकड़ी है। बचत, स्वरोजगार और स्वास्थ्य जागरूकता से इन महिलाओं के जीवन में गुणात्मक बदलाव आया है।

इंग्लैंड के लंकाशायर की रहने वाली लिंडसे बार्न्‍स को चंदनकियारी में ही जीवन साथी भी मिल गया। इंग्लैंड के अपने आलीशान मकान एवं सुख-सुविधाओं वाली जिंदगी के बजाय उन्होंने यहां खपरैल वाले साधारण मकान में रहते हुए अनपढ़-प्रताड़ित महिलाओं के बीच अपने लिए असली खुशियां तलाश लीं।

लिंडसे बार्न्‍स दरअसल 1982 में नई दिल्ली स्थित जेएनयू में सोशल साइंस में मास्टर डिग्री की पढ़ाई करने आई थीं। पढ़ाई के दौरान ही भारत की ग्रामीण महिलाओं की स्थिति पर रिसर्च के लिए वह चंदनकियारी प्रखंड पहुंची थीं। वह गांव-गांव घूमकर क्षेत्र की खदानों में काम करने वाली महिलाओं से मिलीं। उनकी दयनीय सामाजिक-आर्थिक स्थिति देखकर वह द्रवित हो उठीं। खास तौर पर महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं ने उनके अंतर्मन को बहुत परेशान किया। उन्होंने पाया कि पूरे क्षेत्र में झोला छाप चिकित्सकों का राज है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त है। गर्भवती महिलाओं की तड़प-तड़प कर मौत हो जाती है। लेकिन उन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती। जिला मुख्यालय स्थित अस्पताल तक पहुंचाने-ले जाने का कोई साधन नहीं है। लिंडसे कहती हैं कि वह ऐसी-ऐसी घटनाओं से दो-चार हुईं कि उन्हें कई-कई रातों तक नींद नहीं आई। तभी उन्होंने तय किया कि वह यहीं रहकर उनके लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी। चंदनकियारी में ही उनकी मुलाकात जेएनयू के सहपाठी रंजन घोष से हुई। रंजन यहां एक कॉलेज में पढ़ाने लगे थे। उन्होंने ही उनके यहां ठहरने की व्यवस्था की। बाद में दोनों जीवन साथी भी बन गये।

लिंडसे ने चंदनकियारी प्रखंड के चमड़ाबाद में एक खपरैल मकान बनाकर ग्रामीण महिलाओं एवं बच्चों के लिए स्वास्थ्य केंद्र खोल दिया। शुरूआत में साधन कम थे। गर्भवती महिलाओं के लिए पहले उन्होंने आयुर्वेदिक दवाओं की व्यवस्था की। फिर स्वास्थ्य केंद्र में कुशल नर्स को रखा। उसकी देखरेख में गर्भवती महिलाओं का प्रसव होने लगा। धीरे-धीरे चास व चंदनकियारी प्रखंड की महिलाओं की भीड़ आने लगी। 1994-95 में इन्होंने जन चेतना मंच एक संस्था बनायी। स्वास्थ्य केंद्र में एक-दो महिला डॉक्टर भी अंशकालिक तौर पर सेवा देने लगीं। देखते-देखते इसका विस्तार हुआ। आज यहां दो मंजिला स्वास्थ्य केंद्र बन गया है। अल्ट्रासाउंड मशीन, एंबुलेंस और पैथोलॉजी की सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। चार-पांच महिला डॉक्टर भी नियमित रूप से बैठती हैं। जांच के लिए 30 से 50 रुपये एवं सामान्य प्रसव के लिए 1500 रुपये शुल्क निर्धारित है। इस केंद्र में तीन दर्जन से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी कार्यरत हैं। लिंडसे ने गांव-गांव घूमकर 600 से ज्यादा गांवों में महिला स्वास्थ्य मित्र भी बनाये हैं, जो ग्रामीण महिलाओं को संस्थागत प्रसव और उचित पोषण के लिए प्रेरित करती हैं।

लिंडसे ने स्वास्थ्य केंद्र के निकट फूड प्रोसेसिंग यूनिट और आयुर्वेदिक दवा केंद्र भी स्थापित किया है। गांव की महिलाएं जड़ी-बूटी व फूल से कफ सीरप, मालिश का तेल तैयार करती हैं। फूड प्रोसेसिंग यूनिट में चना का सत्तू, दलिया तैयार होता है। इसकी बिक्री से क्षेत्र की अनेक महिलाओं को आय होती है। लिंडसे बतौर काउंसलर रोगियों की सेवा करती हैं। स्वास्थ्य सेवा से इतर उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को बचत के लिए प्रेरित किया। उनकी कोशिशों से चंदनकियारी और चास प्रखंड में लगभग महिलाओं के लगभग तीन सौ स्वयं सहायता समूह बन गये हैं। इन समूहों के जरिए महिलाएं स्वरोजगार से भी जुड़ी हैं।

लिंडसे हर तीन-चार साल के अंतराल में अपने घरवालों से मिलने लंकाशायर जाती हैं। उनके माता-पिता नहीं रहे। भाई-बहन और उनके परिवार के लोग वहां हैं।

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