जब आपको अपना शहर छोड़ना पड़ता है, तब आपको सही मायने में समझ आता है कि आपके लिए उसका क्या मतलब है। मैं जन्म से लुधियानवी हूँ और पली-बढ़ी हूँ। मुझे इसकी कशिश का एहसास तब हुआ जब मुझे आगे की पढ़ाई के लिए इसे छोड़ना पड़ा।
लुधियाना मेरे लिए सिर्फ़ एक जगह नहीं, एक एहसास है। इसकी जीवंत संस्कृति, लाजवाब खाना, चहल-पहल वाली सड़कें और यहाँ के लोगों का स्नेह इसे अविस्मरणीय बनाते हैं। बचपन की यादों से लेकर आधी रात की तलबों तक, यहाँ ढेरों यादें हैं। मुझे याद है और मैं उन्हें संजोकर रखता हूँ – उन पार्कों में गूंजती हमारी मासूम हँसी जहाँ हम बचपन में खेला करते थे; रंगों से रंगे त्योहारों का जश्न मनाना और वो दोस्ती जिसे वक़्त कभी मिटा नहीं सकता। ये पल कभी दोहराए नहीं जा सकते।
मुझे वो बेतरतीब पेस्ट्री की दौड़, बाज़ारों में फैशनेबल कपड़े देखना, और स्कूल के दोस्तों के साथ अपने पसंदीदा कैफ़े में बेफ़िक्री से मिलना बहुत याद आता है। आधी रात को खाने की तलब कोई समस्या नहीं थी। शहर लगभग कभी सोता ही नहीं। ज़्यादातर खाने की दुकानें देर तक खुली रहती हैं, तो कुछ सुबह जल्दी खुल जाती हैं।अब, हर घर वापसी एक उत्सव है। मॉडल टाउन में रावत आइसक्रीम और कुमारन डोसा सिर्फ़ खाने-पीने की जगहें नहीं, बल्कि एक रस्म हैं। लुधियाना ने मेरी पहचान गढ़ी है, मुझे खुशी और लचीलापन सिखाया है। यहीं मेरे मूल्यों का पोषण हुआ, मेरी महत्वाकांक्षाएँ जगीं और मेरे दिल को अपनापन मिला। ज़िंदगी मुझे चाहे जहाँ भी ले जाए, यह हमेशा मेरा घर रहेगा। लुधियाना सिर्फ़ नक्शे पर एक जगह नहीं है; यह मुझमें बसता है।
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