समय पर मौसम आधारित कृषि सलाह से फसल की पैदावार में 20-25 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, यह बात डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. एसके भारद्वाज ने कही। वे हाल ही में नौणी में आयोजित ‘किसानों के बीच मौसम आधारित कृषि सलाहकार सेवाओं के लिए प्रसार प्रणाली के संवर्धन’ विषय पर प्रमुख हितधारकों की बैठक को संबोधित कर रहे थे।
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम), शिमला के सहयोग से आयोजित इस बैठक का उद्देश्य कृषक समुदाय द्वारा मौसम संबंधी आंकड़ों के उपयोग को बढ़ाना था।
इसमें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम), नई दिल्ली, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), एसआरएलएम शिमला और सोलन जिले के कृषि सखी और पशु सखी सदस्यों सहित जमीनी स्तर के प्रतिनिधियों के प्रमुख हितधारक शामिल हुए। पर्यावरण विज्ञान विभाग के संकाय सदस्यों सहित कुल 45 प्रतिभागियों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार-विमर्श किया।
बैठक के समन्वयक डॉ. भारद्वाज ने फसल उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु लचीलापन बनाने में समय पर मौसम आधारित कृषि-सलाह की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस तरह की सलाह से उपज में 20-25 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, और आधुनिक आईसीटी उपकरणों का उपयोग करके छह प्रमुख जिलों में किसानों तक इन सेवाओं को पहुंचाने के विभाग के मिशन की पुष्टि की। डॉ. पूर्णिमा मेहता ने किसानों को क्षेत्र-स्तरीय मौसम की जानकारी देने के लिए मेघदूत ऐप और व्हाट्सएप ग्रुप जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
आईएमडी के वैज्ञानिक डॉ. शेष कुमार गोरोशी ने जलवायु-अनुकूल कृषि के लिए किसानों की क्षमता निर्माण के लिए मजबूत सहयोग का आह्वान किया और घोषणा की कि जागरूकता सृजन पहल के लिए विभाग को शीघ्र ही वित्त पोषण प्रदान किया जाएगा ताकि इसके आउटरीच प्रयासों को बढ़ाया जा सके।
एसआरएलएम का प्रतिनिधित्व करते हुए कुसुम ने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यशालाओं की वकालत की ताकि सलाह की अंतिम छोर तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके। एनआरएलएम टीम ने इस आवश्यकता को दोहराया और ग्रामीण समुदायों के लिए दीर्घकालिक स्थिरता और आजीविका वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए संरचित क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के महत्व पर जोर दिया।
यह पहल वैज्ञानिक सलाह और कृषि-स्तरीय निर्णय लेने के बीच की खाई को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो अंततः अधिक लचीले और उत्पादक कृषि परिदृश्य में योगदान देगा।
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