July 17, 2025
National

मुबारक बेगम : जिन्होंने 115 से अधिक फिल्मों में दी अपनी मधुर आवाज, गरीबी और गुमनामी में छोड़ी दुनिया

Mubarak Begum: Who gave her melodious voice in more than 115 films, left the world in poverty and anonymity

हिंदी सिनेमा के लिए 1950 से 1970 का दशक वह दौर था जब लता मंगेश्कर और मोहम्मद रफी की आवाज हर दिल की धड़कन थी। उनके गीत हर जुबान पर चढ़े थे, और उनकी मधुरता हर महफिल की शान थी। लेकिन इस चकाचौंध भरे दौर में एक ऐसी गायिका भी थीं, जिनकी मखमली और भावपूर्ण आवाज ने लाखों दिलों को छुआ, फिर भी वे समय की भीड़ में कहीं पीछे रह गईं। हम बात कर रहे हैं मुबारक बेगम की, जिनकी गायकी का जादू ‘कभी तन्हाइयों में यूं, हमारी याद आएगी’ जैसे गीतों में आज भी जिंदा है।

5 जनवरी, 1936 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के सुजानगढ़ कस्बे में जन्मीं मुबारक बेगम की आवाज में गजलों की गहराई और भावनाओं का समंदर था, जो दर्शकों की आत्माओं को छू लेता था। अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से करने वालीं मुबारक बेगम का बचपन गरीबी में बीता और इसी कारण उन्हें शिक्षा नहीं मिल सकी, लेकिन संगीत के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था। उन्होंने किराना घराने के उस्ताद रियाजुद्दीन खान और उस्ताद समद खान से संगीत की शिक्षा ली और यहीं से उनका गायिकी की ओर रुझान और भी बढ़ा।

मुबारक बेगम ने ऑल इंडिया रेडियो पर गाने गए और उनकी आवाज ने संगीतकारों का ध्यान भी आकर्षित किया। बाद में उन्हें बॉलीवुड से भी ऑफर मिलने लगे। 1949 में फिल्म ‘आइए’ में उन्हें पहला मौका मिला। उन्होंने ‘मोहे आने लगी अंगड़ाई, आजा आजा’ गीत गाया। इस फिल्म में उन्होंने लता मंगेशकर के साथ युगल गीत भी गाया। 1950 और 1960 के दशक के दौरान उन्होंने एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन और खय्याम जैसे संगीतकारों के साथ काम किया। उनका सबसे मशहूर गाना ‘कभी तन्हाइयों में यूं, हमारी याद आएगी’ 1961 में आई फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ का है। इस गीत को हर किसी ने सराहा। उन्होंने ‘मुझको अपने गले लगा लो, ओ मेरे हमराही’ (फिल्म हमराही, 1963), ‘हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे’ (मधुमति, 1958) और ‘वादा हमसे किया, दिल किसी को दिया’ (सरस्वतीचंद्र) जैसे मशहूर गीतों को अपनी आवाज दी।

मुबारक बेगम ने 1950 से 1970 के दशक के बीच 115 से अधिक फिल्मों में 175 से ज्यादा गीत गाए, जिनमें से कई गाने आज भी सदाबहार हैं। हालांकि, उनके करियर को फिल्मी दुनिया की राजनीति ने प्रभावित किया।

गरीबी और गुमनामी में अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताने वाली महान गायिका ने अपनी मौत से पहले एनडीटीवी से बातचीत में गाने की इच्छा जताई थी। मुबारक बेगम ने कहा था, “अल्लाह महान हैं और मदद कहीं न कहीं से आ ही जाती है, लेकिन अगर मुझे अपने लिए मदद मांगनी पड़े, तो मैं क्या कहूं? दूसरों को पता होना चाहिए कि इस तरह जीना कितना मुश्किल है। भले ही मेरे पास अब पहले जैसा काम न हो, मगर मेरा नाम अभी भी जिंदा है। दुआ कीजिए कि मुझे कुछ मदद मिले।”

आर्थिक तंगी के बावजूद मुबारक बेगम ने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और अपनी खुद्दारी को बनाए रखा। बेगम का लंबी बीमारी के बाद 18 जुलाई, 2016 को मुंबई के जोगेश्वरी स्थित घर में दम तोड़ दिया। वे 80 साल की थीं। उनके निधन ने हिन्दी सिनेमा के स्वर्ण युग की एक महान आवाज को खामोश कर दिया।

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