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मुजफ्फरपुर : लीची उत्पादन में उतार-चढ़ाव, गुणवत्ता पर जोर : राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक

Muzaffarpur: Fluctuation in litchi production, emphasis on quality: Director of National Litchi Research Center

बिहार के लीची उत्पादकों को इस बार फल के उत्पादन को लेकर शुरुआत में काफी उम्मीदें थीं, लेकिन तापमान में बढ़ोतरी ने उत्पादन को प्रभावित किया है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के निदेशक डॉ. विकास राय ने समाचार एजेंसी से बातचीत में बताया कि इस साल लीची का मंजर (फूलों का खिलना) बहुत अच्छा था।

उन्होंने बताया कि शुरू में अनुमान लगाया गया था कि बिहार में लीची का उत्पादन सामान्य तीन लाख टन से 10 प्रतिशत अधिक हो सकता है। हालांकि, अप्रैल में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ा। अब उम्मीद है कि इस साल का उत्पादन दो साल पहले के स्तर के बराबर रहेगा, जो पिछले साल की तुलना में बेहतर है, क्योंकि पिछले साल मंजर बहुत कम आया था।

डॉ. राय ने बताया कि बिहार के कुल लीची उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा मुजफ्फरपुर से आता है। यहां शाही, चाइना और वेदना जैसी लीची की प्रमुख किस्मों की खेती होती है। लीची के शाही और चीन की व्यावसायिक खेती ज्यादा प्रचलित है, जबकि वेदना का दायरा छोटा है। इसके अलावा, कुछ स्थानीय किस्में जैसे मनराजी (भागलपुर क्षेत्र) और रोज सेंटेड (दरभंगा में लोकप्रिय) भी हैं। रोज सेंटेड लीची की खुशबू खास तौर पर तीव्र होती है और इसकी गुणवत्ता हमेशा बनी रहती है।

हालांकि, बाजार में लीची की गुणवत्ता को लेकर चुनौतियां हैं। डॉ. राय ने बताया कि कई व्यापारी अधिक मुनाफे के लिए लीची को समय से पहले तोड़ लेते हैं। लीची एक गैर-जलवायु फल (नॉन-क्लाइमेक्टेरिक) है, जिसका मतलब है कि तोड़ने के बाद इसका मिठास और स्वाद नहीं बढ़ता, जैसा कि आम और केले जैसे जलवायु फलों में होता है। शाही लीची में पूरी मिठास 22 से 25 मई के बीच आती है, जब फल पेड़ पर ही पूरी तरह पक जाता है। लेकिन बाजार में मांग और बंगाल से लीची की जल्दी आपूर्ति (अप्रैल अंत से) के कारण, मुजफ्फरपुर के कुछ किसान और व्यापारी 15 मई से ही फल तोड़ना शुरू कर देते हैं। इससे लीची में अपेक्षित मिठास और खुशबू नहीं आ पाती।

डॉ. राय ने जोर देकर कहा कि जो किसान लीची की खेती को गंभीरता से लेते हैं, वह 22 मई से पहले फल नहीं तोड़ते। ऐसे किसानों की लीची बाजार में बेहतर गुणवत्ता के साथ पहुंचती है। उन्होंने सुझाव दिया कि लीची की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सही समय पर तुड़ाई जरूरी है। इससे न केवल किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी उच्च गुणवत्ता वाला फल मिलेगा।

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