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नानाजी देशमुख : 500 से अधिक गांवों की बदली तस्वीर, जेपी को बचाने के लिए खाई लाठियां

Nanaji Deshmukh: Changed picture of more than 500 villages, lathi charge to save JP

नई दिल्ली, 10 अक्टूबर । भारत रत्न, मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में काम किया। हम बात कर रहे हैं नानाजी देशमुख की। नाना जी का असली नाम चंडिकादास अमृतराव देशमुख था। वो सिर्फ समाजसेवी नहीं रहे, बल्कि जनसंघ के संस्थापकों में भी शामिल थे। उन्होंने यूपी और मध्य प्रदेश के 500 से अधिक गांवों की तस्वीर भी बदली।

11 अक्टूबर 1916 को नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था। बचपन में उनके ऊपर से माता-पिता का साया उठ गया था। इसके बाद उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए काफी मुश्किल भर दौर से भी गुजरना पड़ा था। बताया जाता है कि शिक्षा के लिए पैसे जुटाने की खातिर नाना जी ने सब्जी बेचने का भी काम किया। उन्‍होंने सीकर से हाई स्कूल और बिड़ला कॉलेज (अब बिड़ला स्कूल, पिलानी) में पढ़ाई की थी। उसी समय वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी जुड़े।

तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एमएस. गोलवलकर ने नाना जी को प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा। वह बाल गंगाधर तिलक और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा से काफी प्रेरित थे। शुरुआत से ही उनकी दिलचस्‍पी सामाजिक सेवा में रही। नाना जी देशमुख की जिदंगी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।

दरअसल, पटना में जेपी आंदोलन करते वक्‍त नानाजी देशमुख ने लाठियां खाकर जय प्रकाश नारायण को बचाया था। इसमें उनके हाथ में गंभीर चोट आई थी।

1977 में नाना जी उत्तर प्रदेश की बलरामपुर सीट से लोकसभा सांसद भी बने। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। लेकिन, उन्होंने यह कहकर मंत्री पद का ऑफर ठुकरा दिया था कि 60 साल से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाजसेवा करें। 1980 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपना सारा जीवन सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया।

1997 में उन्होंने वसीयतनामा लिखकर अपना शरीर मेडिकल शोध के लिए दान कर दिया था। उन्हें समाज सेवा के लिए 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने नानी जी देशमुख को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। 1950 में नाना जी देशमुख ने यूपी के गोरखपुर में देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय खोला था। जिसकी आज पूरे देश में 30 हजार से अधिक शाखाएं है।

इसके अलावा वो दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के संस्थापक भी कहे जाते हैं। इसी चित्रकूट में मानवता की मिसाल 27 फरवरी 2010 को बुझ गई। 90 साल की उम्र में नाना जी देशमुख ने आखिरी सांस ली। लेकिन, देश उनके योगदान को हमेशा याद रखा है।

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